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✍ लेखक ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आदमी एक बुध्दिमान प्राणी है , बल्कि यह कहना चाहिए कि आदमी पृथ्वी के समस्त जीवों में सर्व बुद्धिमान जीव है। उसे समय का दोहन सबसे अधिक अच्छी तरह से आता है। यदि पृथ्वी पर शेर चीते से भी निर्मम औऱ हिंसक जीव की खोज की जाए तो उसमें मानव का प्रथम स्थान होगा। अपनी बुद्धिमत्ता का जितना अधिक उपयोग कर सकता है ,उससे कहीं अधिक वह उसका दुरुपयोग करने में कुशल है।
समझ में नहीं आता कि मानव को किसने सहृदय, दयालु , परोपकारी और मानवीय होने की संज्ञा प्रदान कर दी। अपने बच्चों पर तो शेरनी भी दयालु होती है।शेर भी उन्हें स्नेह करता है, लेकिन हिरन और उनके परिवार पर उनकी दया कहाँ चली जाती है। मानव भी उसी प्रकार अपने बच्चों पर दयाभाव दिखाता है, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ?कुत्ते ,बिल्ली , गधे , घोड़े , गाय ,भैंस आदि पशुओं से मानव बढ़कर ही निर्मम है।
कहा जाता है कि 'धीरज धर्म मित्र औ' नारी ।आपद काल परखिये चारी।' आज आपदा काल को सचाई के साथ परखा जा रहा है। आज विश्व आपदा महामारी कोरोना के कारण सारा संसार त्रस्त है। ऐसे समय में आदमी समय को भुना रहा है ,उसका निर्मम दोहन कर रहा है। इस काम के लिए जंगल से शेर , चीते , बघर्रे नहीं आ रहे हैं।
एक -एक मरीज को यदि कोई चूस रहा है , तो वह मानव ही है। जो अपने को प्रबुद्ध और सफेदपोश कहता है , वही हॉस्पिटल में एक -एक दिन का तीस -बत्तीस हजार वसूल कर रहा है। निजी अस्पतालों में केवल पैसा लेकर उसकी हत्या कर दी जा रही है। सरकारी में न इलाज , न साधन , न डॉक्टर , न देख रेख करने वाले। स्पष्ट शब्दों में कहा जाय तो उसे बस पैसा कमाने की पड़ी है। कोई मरे या अपनी किस्मत से बच जाए ,उसे कोई मतलब नहीं है। यह वह वक्त है , जब मुखौटे लगाए आदमी आदमी के लिए जहर बन गया है। कुछ सरकारी चिकित्सकों और नर्सों को छोड़ दिया जाए , वे इंसान नहीं भगवान के रूप में ही सेवाकार्य में लगे हैं, शेष लुटेरे जान और पैसा दोनों का दोहन कर मानवता के दुश्मन बने हुए हैं।
इन नर पिशाचों को सबसे प्रिय मानव का रक्त ही है। वे आपदा काल का पूरा दोहन कर कलियुग का सच्चा रूप प्रदर्शित करने में लगे हैं।इनसे बड़ा इंसान का घातक शत्रु कौन हो सकता है?मरने वाले मर रहे हैं , देखने वाले आँखों पर पट्टी बाँधे पड़े हैं।क्या नेता! क्या मंत्री !! सब जान रहे हैं। लगता है अपरोक्ष रूप में इनका भी इस चल रहे शोषण में साझा है।सब मिली भगत से कारनामों को अंजाम दिया जा रहा है। तू न कहे मेरी ,मैं न कहूँ तेरी।
ये आज के आदर्श भारत का एक सुंदर निदर्शन है। बड़े -बड़े मंदिर और धर्मस्थल भी क्या इसी काम के लिए बन रहे हैं? क्या सारे नियामक और कर्ता धर्ता अंधे हो गए हैं। अब सब कुछ दूध औऱ पानी की तरह साफ हो चुका है।आज आदमी हमाम में नहीं, सड़क , हॉस्पिटल और शहर -शहर में नंगा हो चुका है , मगर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं। कहीं कोई विरोध नहीं , आंदोलन नहीं, हड़ताल नहीं, मोमबत्ती जलाओ अभियान नहीं, थाली शंख घड़ियाल नाद नहीं। कोई मौन या मुखर क्रांति नहीं। सब सहज स्वीकार कर लिया गया है जैसे। शोषण और चूषण का सामान्यीकरण ही हो गया है।ऊपर से नीचे तक सबने शोषण को अनिवार्य ही मान लिया है। क्या इससे भी बुरा वक्त आएगा , जब आदमी आदमी का दुश्मन बनकर उसके शव पर नाचेगा। ये शवों पर नाच करता हुआ आदमी, अब मास्क लगाकर जिंदा को लाश बनाने पर तुल गया है। शायद वह अमरौती खाकर आया है। ये सर्वनाशी व्यवस्था हेय ,घृणास्पद और निंदनीय है।
💐 शुभमस्तु !
24.07.2020 ◆8.30 अपराह्न।
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