शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

आज के देवता [ व्यंग्य ]

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 ✍ शब्दकार©
 🙊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 
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              देवताओं को सदैव से अपने अस्तिव का भय रहा है।इसलिए प्राचीन कालीन देवता तत्कालीन अस्त्र -शस्त्रों से लैस रहे हैं।भाला , त्रिशूल ,कटार,तलवार, धनुष बाण,गदा,चक्र उनके हाथों में उनके व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाते रहे हैं।ऐसा लगता है कि उनके लिए हर समय खतरा बना हुआ है।ब्रह्मा , विष्णु, महेश ;जो सृष्टि के जनक, पालक और संहारक देव हैं , वे भी हर समय अस्त्र - शस्त्र धारण किए हुए रहते हैं। लगता है उन्हें अपने से भी महान का संकट है।
           अब हमें ही ले लीजिए ।आजकल के देवता तो हम ही हैं। उस जमाने में आदमी पत्र ,पुष्प, फल चढ़ाकर और कुछ दिनों नाम जपकर ब्रम्हा , विष्णु , महेश किसी को भी आहूत कर मन वांछित वरदान प्राप्त कर लेते थे , परंतु आज के हम देवताओं और देवियों के दर्शन पत्र, पुष्प, फल चढ़ाकर कर पाना सम्भव नहीं है। उन देवताओं की तरह हम देव लोग भी कम डरपोक नहीं है। वे साँप पालते थे । हम भी साँपों के बीच में रहकर जिंदा हैं। साँपों के बिना हम नहीं रह सकते । वे ही हमारे अस्त्र -शस्त्र हैं। वे ही हमारे रक्षक हैं। भला डेढ़ पसली की देह से हम देव लोग(लुगाई भी) कितना बोझ संभालें, इसलिए पिस्टल, रायफल , बंदूक ,स्टेनगन सब कुछ उन्हीं के कंधों और पीठ पर लाद देते हैं और हम मूँछ पर ताव देते हुए (यदि मूँछ वाले हुए तो) सीना तानकर डगडग , भगभग दौड़ते हुए से चलते हैं।या यह कहें कि चलते हुए दौड़ते हैं। और कुछ इधर कुछ उधर हमारे तथाकथित अंगरक्षक, बॉडी गार्ड ,शैडो , कुछ भी कहिए , हमारे साथ -साथ भागते हैं।

             हम इतने सभीत हैं कि किसी सभा आदि में भाषण करते हुए भी हमें उन्हें अपने पीछे ऐसे खड़े रखना पड़ता है , जैसे शंकर भगवान के गले में सर्प कुंडली मारे खड़े हों। हमारे घर ,द्वार ,ऑफिस ,कार ,यात्रा आदि में कोई भी क्षण ऐसा नहीं है , जब हम अपने को आम आदमी समझ सकें। हमें हमेशा 'विशेष' के आवरण में लिपटे रहना पड़ता है। यह हमारी मजबूरी है। यदि ऐसा नहीं करें ,तो हमारी शान को बट्टा लगता है। 

             ये हथियारों का ज़खीरा साथ लेकर चलने के पीछे हमारी प्रेस्टिज भी तो है। यदि आम आदमी की तरह हम भी पान की दुकान पर पान खाने खड़े हो जाएं , गोल गप्पे वाले से सड़क पर गोल गप्पे खाने लग जाएं , या आम आदमी की तरह लैगी ,चड्ढी , बरमूडा या हाफ पैंट पहनकर बाइक पर तफरी करने लगें या टहलने लगें तब तो हो गया बस! हमें फिर कौन घास डालेगा? हमारा सारा का सारा देवत्व मिट्टी में नहीं मिल जाएगा ? इसलिए हर स्तर पर हमें 'विशेषत्व'का चोगा पहने रहना पड़ता है। हमारी हर चीज विशेष ही होती है। हमारे बीबी , बच्चे भी स्पेशल होते हैं। उनका स्तर एकदम भिन्न ।

              सबसे अलग! हमारी एक झलक पाने के लिए आम लोगों की भीड़ लगी रहती है। पर हम इतने कठोर भी नहीं हैं, हमारे यहाँ भी मंदिरों के भगवानों की।तरह बैक डोर एंट्री भी है। अपने कुछ खास नाते - रिश्तेदार उसी दरवाजे से हमारे दर्शन लाभ कर पीछे से ही रवाना हो जाते हैं। अरे! भई! विशेष के साथ वाले भी तो विशेष ही हुए न! वे आम कैसे हो सकते हैं भला ? कोई ऑब्जेक्शन करे तो करता रहे ,इससे भला हमें क्या लेना -देना? अब आप ही बताइए यदि मेरी साली जी फोन करें कि आपसे एकांत वार्ता करना चाहती हूँ, तो भला हम कैसे इनकार कर सकते हैं। हमारी सहधर्मिणी से कहकर हमारा भोजन -पानी भी बन्द हो जाएगा ! इसलिए हजार काम छोड़कर हमें मीटिंग से मुँह मोड़कर साली जी के सान्निध्य में पिछले गेट से आना ही पड़ता है। हमारी साली जी भी तो स्पेशल ही हुईं न? विशेष का नाता विशेष से ही हो सकता है।

              उस विशेषत्व से भला नीचे कैसे आ सकते हैं। इसलिए हमें सत्ता से बाहर होने पर भी अपना रुतबा(झूठा ही सही) बनाए रखने के लिए कभी -कभी अख़बारों में बयान भी देना पड़ता है ,  प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बुलानी पड़ती है। भले ही कोई न सुने। कोई न माने। पर हमें लोग विस्मृत न कर दें , इसलिए कुछ उठा -पटक, लटक -झटक , चटक - मटक के घण्टे टंटनाने ही पड़ते हैं। फिर वही बात , हमें अपने सांपों को भी बराबर दूध पिलाते रहना पड़ता है। क्योंकि सत्ता में आने पर वही हमारे सबसे बड़े मददगार साबित होते हैं। उनसे दूरी कैसे बनाई जा सकती है। जो दूरी बनाते हैं , वे कुर्सी से भी सदा के लिए दूर हो जाते हैं ।

             हम कोई आम नहीं हैं, जो सड़क पर खड़े होकर आम चूस लें। आम को हम चूसते तो हैं ही, पर हमारा ढंग और शैली कुछ अलग ही है।आम चुस भी जाए ,औऱ उसे पता भी नहीं लगे। इसे कहते हैं आम को चूसना! यह हम आज के देवताओं और देवियों का विशेषत्व ही है। हम प्राचीन देवताओं से भी दुर्लभ और अलभ्य हैं। हमारी अपनी महिमा है, जिसे हमारे पालित साँप और जहरीले नाग अपने-अपने फणों से गायन करते हैं औऱ हम मन ही मन अपने देव -गायन स्तुति का आनंद लेते भए शेष शैया पर शयन करते हैं। मगन रहते हैं। 
 हम हैं ये आज के देव। 

 💐 शुभमस्तु !

 31.07.2020 ◆5.35 अपराह्न।

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