गुरुवार, 23 जुलाई 2020

अपगा [ कुण्डलिया ]

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✍ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप' शुभम'
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                          -1-
अपगा पग बिन चल रही,नापे पथ मैदान।
सागर में जाकर मिली,ईश्वर का वरदान।।
ईश्वर का वरदान,बनी निर्मल से खारी।
बनती नभ का मेघ,प्रकृति ही सदा उबारी।।
'शुभम'गा रही गीत,बनी जीवन की सुभगा।
करती है उद्धार,भले वह होती अपगा।।

                            -2-
अपगा गिरि से जन्म ले,चलती है दिन रात।
नहीं थके रुकती कभी,अपगा संध्या प्रात।।
अपगा संध्या प्रात,गा रही कलकल गायन।
प्यास बुझाती कीर,मनुज पशु शांति प्रदायन
हरिआते हैं खेत,नहीं वह होती नभगा।
'शुभम'धरा की प्रीत,बहारें लाती अपगा।।
 
                          -3-
अपगा को नदिया कहें,देती वह दिन रात।
गुनगुन गाती जा रही,करे न कोई बात।।
करे न कोई बात,कर्म ही उसकी पूजा।
लेती नहीं विराम,कौन सरि के सम दूजा।।
सरिता'शुभम'महान,रविसुता गंगा सुभगा।
करती जग कल्याण,पावनी निर्मल अपगा।।

                         -4-
अपगा से ही सीख ले,पग वाले नर जीव।
पंगु बना मजबूर सा,बना हुआ है क्लीव।
बना हुआ है क्लीव,बेहतर तुझसे चींटी।
करती श्रम दिन रात,बजाती कभी न सीटी।।
'शुभम'कर्म का दोष, बना है मानव दुभगा।
प्रेरक सरिता मीत, सीख ले कर्मठ अपगा।।

                        -5-
अपगा माता गुरु बनी,जबसे बहती धार।
बिना पैर चलती रही,कभी न मानी हार।
कभी न मानी हार, पिता पर्वत से आई।
सिंधु पिया के साथ, मिलन को नीचे धाई।।
'शुभम'कठिन है राह, पारकर बनती सुभगा।
कहते नदिया लोग,सदा सुन्दर शिव अपगा।।

💐 शुभमस्तु !

21.07.2020 ◆1.00 अप.

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