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✍ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
शिव शंभु सहाय करो इतनी,
भवसागर के अघ ताप हरौ।
प्रभु अवढर भोले दानी हो,
तव चरणों में निज माथ धरौ।
गौरीपति शंकर महादेव,
दुःख से दूषित संताप दरो।
है 'शुभम' शुष्क सुख की सरिता,
शुभ गंगाजल से हे नाथ भरो।।
-2-
जपता त्रिपुरारी नाम सदा,
मन - मंदिर में मेरे आओ।
करुणाकर कृपासिंधु अपनी,
करुणा का बादल बरसाओ।।
मैं दीन दुःखी माया बंधित,
माया का जाल हटा जाओ।
शिव' शुभम' नयन मेरे खोलो,
मम लोभ मोह को हर जाओ।।
-3-
शिव शून्य नाथ तुम अक्षर हो,
शाश्वत हो कण-कण के वासी।
हो अजर अमर शिव नित्य सत्य,
व्यापक जग में हे अविनाशी।
रवि शशि से पहले भी तुम थे
तुम जग के कारण कर्ता भी।
प्रभु'शुभम'ज्ञान विज्ञान तुम्हीं
हर जीव - उदर के भर्ता भी।।
-4-
कैलाश धाम में वास सदा,
धरती पर दृष्टि करो स्वामी।
तुम भस्म काम को करते हो,
अघलिप्त मनुज है बहुकामी।
शीतल हिम वासी तपसी हो,
ग्रीवा में विषधर हैं नामी।
माँ पार्वती अर्धांगिनि हैं,
दोनों सुत शिव के अनुगामी।।
-5-
तन पर लिपटाए भस्म सदा,
बाघम्बर गले मुंडमाला।
ध्यानावस्थित रहते भोले,
आसन तव मोहक मृगछाला।
हैं शीश विराजित गंगा माँ,
चंद्रमा द्वितीया का आला।
विनती करते हम बार -बार,
अज्ञान हटा काटें जाला।।
-6-
नंदी पर शंभु सवारी कर,
माँ पार्वती के सँग रहते ।
करते हैं भ्रमणअखिल जग का,
जग की चर्चा उनसे कहते।।
देखते सभी के सुख दुःख को
हम संतापित सहते-सहते।
प्रभु 'शुभम'याचना करता है,
क्यों कष्ट ऊठाएँ शिव रहते।।
-7-
निज ज्ञान भक्ति का वर दे दो,
अर्चन वंदन मैं करता हूँ।
यह अपना शीश विनत करके
चरणों में प्रभु के धरता हूँ।।
शिव शंकर अंतर्यामी हो ,
क्या माँगूँ नहीं उचरता हूँ।
सब 'शुभम' सदा ही करते हैं,
यह सच है अघ से डरता हूँ।।
शिव शंभु सहाय करो इतनी,
भवसागर के अघ ताप हरौ।
प्रभु अवढर भोले दानी हो,
तव चरणों में निज माथ धरौ।
गौरीपति शंकर महादेव,
दुःख से दूषित संताप दरो।
है 'शुभम' शुष्क सुख की सरिता,
शुभ गंगाजल से हे नाथ भरो।।
-2-
जपता त्रिपुरारी नाम सदा,
मन - मंदिर में मेरे आओ।
करुणाकर कृपासिंधु अपनी,
करुणा का बादल बरसाओ।।
मैं दीन दुःखी माया बंधित,
माया का जाल हटा जाओ।
शिव' शुभम' नयन मेरे खोलो,
मम लोभ मोह को हर जाओ।।
-3-
शिव शून्य नाथ तुम अक्षर हो,
शाश्वत हो कण-कण के वासी।
हो अजर अमर शिव नित्य सत्य,
व्यापक जग में हे अविनाशी।
रवि शशि से पहले भी तुम थे
तुम जग के कारण कर्ता भी।
प्रभु'शुभम'ज्ञान विज्ञान तुम्हीं
हर जीव - उदर के भर्ता भी।।
-4-
कैलाश धाम में वास सदा,
धरती पर दृष्टि करो स्वामी।
तुम भस्म काम को करते हो,
अघलिप्त मनुज है बहुकामी।
शीतल हिम वासी तपसी हो,
ग्रीवा में विषधर हैं नामी।
माँ पार्वती अर्धांगिनि हैं,
दोनों सुत शिव के अनुगामी।।
-5-
तन पर लिपटाए भस्म सदा,
बाघम्बर गले मुंडमाला।
ध्यानावस्थित रहते भोले,
आसन तव मोहक मृगछाला।
हैं शीश विराजित गंगा माँ,
चंद्रमा द्वितीया का आला।
विनती करते हम बार -बार,
अज्ञान हटा काटें जाला।।
-6-
नंदी पर शंभु सवारी कर,
माँ पार्वती के सँग रहते ।
करते हैं भ्रमणअखिल जग का,
जग की चर्चा उनसे कहते।।
देखते सभी के सुख दुःख को
हम संतापित सहते-सहते।
प्रभु 'शुभम'याचना करता है,
क्यों कष्ट ऊठाएँ शिव रहते।।
-7-
निज ज्ञान भक्ति का वर दे दो,
अर्चन वंदन मैं करता हूँ।
यह अपना शीश विनत करके
चरणों में प्रभु के धरता हूँ।।
शिव शंकर अंतर्यामी हो ,
क्या माँगूँ नहीं उचरता हूँ।
सब 'शुभम' सदा ही करते हैं,
यह सच है अघ से डरता हूँ।।
💐 शुभमस्तु !
27.07.2020◆1.45 अप.
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