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✍शब्दकार©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अग्नि का पर्याय
है पावक
करता है
जो पावन
तन मन
जग का कण- कण,
है शुद्धि की क्रिया
कहते हैं जिसे
यजन।
मानव- जन्म
यज्ञ से उत्पन्न,
यज्ञ ही कारण,
योग की विधि
है यज्ञ
परमात्मा द्वारा
मानव हृदय में
सम्पन्न।
त्याग कर भय
सोत्साह
लक्ष्य पर दृष्टि
सप्रसन्न मन
आत्मचिंतन है
यजन
यज्ञ।
ज्ञान को प्रकाशित
करता पावक
मिटाता निबिड़ तम,
वायुभूत होते
हवनीय पदार्थ
करते शुद्ध वायु,आकाश
तन मन के
सर्व विकार।
अनुभव का दुग्ध
घृत ज्ञान का,
विवेक -पावक में
तपता,
सत्य का प्रकाश
अगजग में भरता
विकार हरता।
यज्ञ का तात्पर्य,
त्याग ,
बलिदान,
शुभ कार्य,
जीव का आत्मा में
विलयन,
देव पूजन ,
दान,
धार्मिकों को
सतप्रयोजनार्थ
संगठित करना
कहलाता है
संगतिकरण।
किन्तु बहुत दुःख है
कि सती माता के
बाद इतिश्री
हो गई
यह पावन
यज्ञ संस्कृति!
घुलती मिलती
रही हैं
अनेक विकृति।
💐 शुभमस्तु !
02.07.2020◆7.15 अपराह्न।
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