गुरुवार, 30 जुलाई 2020

सभीत आज के देव [अतुकान्तिका]

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
जो है 
जितना ही आम,
उसे है 
उतना ही आराम,
न भय का
कोई झाम,
शांति से बिता रहा
निज सुबहो -शाम।

बना है
जो भी 
आज विशेष,
बढ़े जीवन में
उतने क्लेश,
नहीं है कहीं 
शांति का लेश,
बदलता नित्य
वह छद्म -वेश,
चतुर्दिक भय की मार,
लदे तन पर भारी हथियार।

देवता -देवी
सभी सभीत ,
सदा चिंतित
नहीं मन ठीक,
लदे तन पर,
कितने हथियार,
सदा भयग्रस्त 
त्रस्त दुःख भार,
नहीं जीवन में 
शांति का सार।

श्री ब्रह्मा विष्णु महेश
मातु दुर्गा के 
देखो वेश,
अनेकों हाथ 
सभी   के साथ,
तन पर लादे
कितने -कितने
हथियार,
सुरक्षा का 
साधन अपार।

आज के देवी -देव
निपट खाली कमजोर,
धरा के सब छोर,
हाथ में नहीं
एक भी दंड,
पर मन में
है व्याप्त
भय भीषण
प्रबल प्रचंड,
साथ में 
अंग रक्षकों की फ़ौज,
नाक के नीचे
जिनके झबरी मूँछ,
नहीं करते नेताजी
उनकी पूछ,
मगर रहना ही है
बनकर पूँछ,
लाद तन पर हथियार,
कहलाते हैं ,
शैडो(छाया)
बॉडी गार्ड!

देवता से 
मिलना आसान,
चढ़ावा देकर 
पत्र ,पुष्प ,फलदान,
इसी में तुष्टि का मान,
किन्तु आज के
ये देव
नहीं मानव को उपलब्ध!
न देना दर्शन
उनकी शान,
बहुत प्यारी है
उनको अपनी जान,
बनाए शत्रु न
कहीं निशान?

हाय रे!
तू कैसा इंसान,
बना मानव हित
दुर्लभ,
करेगा क्या 
मानव पर अहसान?
किसी के हित का
अनुसंधान?
वाह रे ! 
नेता देव!
तू तो सचमुच
सभीत डरपोक
महान।

आज का देव!
दुर्लभ अति विशेष!
देव है 
इसीलिए दुर्लभ,
मानव से
 मानव का मिलना,
तू भी है
एक अदद इंसान,
यही है 
आधुनिक देव की
मिथ्या शान, 
जिसे कहते 
नेता डरपोक महान!!

💐 शुभमस्तु!

30.07.2020◆ 4.00 अप.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...