शनिवार, 18 जुलाई 2020

ग़ज़ल

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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दुनिया    की  मुस्कान  छली है।
मुरझाई   हर   कली  - कली  है।

सबके अलग - अलग गलियारे, 
खुदगर्ज़ी   ही  यहाँ   फली  है।

नहीं   चाहते     किसी  और को,
जान  रहे   सब  काल  बली है।

अहंकार    नित    शीश  उठाए ,
नज़र   अंत   में   धूल  मिली है।

सदा     कर्म    की   पूजा   होती,
दुष्कर्मी   की    नहीं   चली है।

सत्यमेव     ही     मूल   मंत्र    है,
लगे   झूठ    की  मधुर   डली है।

लिए     सबूरी    'शुभम'   जी रहा,
उसके    हित   यह    राह  भली  है।

💐 शुभमस्तु !

18.07.2020 ◆ 6.15अप.

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