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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रिमझिम वही
पावस वही
सावन वही
बुँदियाँ वही
जितनी बहीं
सबने सहीं
सबने कही
अपनी सही।
हर्षित कृषक
चातक तृपित
विरहिन दही
मुदिता मही
दम्पति मगन
हरितांकुरित वन
उपवन प्रमन।
यहाँ पानी
वहाँ पानी
धरा धानी
टपकी छानी
वर्षा रानी
मेघ रानी
छटा सुहानी
घटा काली।
सभी भूले
कहाँ झूले?
नदी नाले
हैं मतवाले
भरी सड़कें
तड़ित तडकें
गरज भारी
प्रलयंकारी।
मुदित बच्चे
लगें अच्छे
नग्न नहाते
नहीं छाते
भींग जाते
मस्त नाचे
छिपा बस्ते
चले रस्ते।
गरज गड़ गड़
तड़ित कड़ कड़
झरत झर झर
बोल हर हर
चमक आई
न गरम छाई
झड़ा सावन
'शुभम'पावन।।
💐 शुभमस्तु !
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