सोमवार, 20 जुलाई 2020

आदर्शों का दिखावा [ गीत ]

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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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थोथे   आदर्शों  का   नित्य दिखावा   है।
झूठ  आँकड़ों  में  ही  काशी काबा  है।।
जनता  को ठग रहे देश के व्यभिचारी।
रँगे    वेषधारी   बन     बैठे  बाबा   हैं।।

भोली जनता के शोषण में लिप्त सभी।
चंगुल में जो फँसा न उबरा यहाँ कभी।।
जाल   फँसा   जो  पंछी भूखा प्यासा  है।
उसे  वहीं  पर   जाना  अपना दावा है।।
थोथे  आदर्शों   का     नित्य दिखावा  है।
झूठ  आँकड़ों  में  ही काशी काबा   है।।

नारी   के   पैरों   में    बेड़ी जकड़ी   है।
पुरा  छद्म  का  जाल  बना दी मकड़ी  है।।
गले स्वर्ण का हार आग का लावा है।
उधर  नारि  को  देख  पुरुष मुस्काया  है।।
थोथे   आदर्शों     का   नित्य दिखावा  है।
झूठ   आँकड़ों   में  ही काशी काबा है।।

बन   बैठा    भगवान   आज का   नेता  है।
देने  का  बस  नाम  सभी हर लेता  है।।
 बचा सियासत-पंक वही बड़भागा है।
मिलता न जनों को छाछ उसे नित मावा है।।
थोथे   आदर्शों   का    नित्य दिखावा   है।
झूठ   आँकड़ों   में  ही काशी काबा  है।।

धनिकों के मछली जाल वही मछुआरे हैं।
शासन  ,सत्ता   के   बने  हुए वे  प्यारे  हैं।।
सच्चों  पर झूठा  राज  असार छलावा है।
आम     आदमी   हेतु    बचा पछतावा है।।
थोथे   आदर्शों   का   नित्य दिखावा  है।
झूठ   आँकड़ों   में  ही काशी काबा  है।।

जाति , धर्म  के  खेल   निराले होते हैं।
टाँगें     फैलाकर    नेताजी  सोते  हैं।।
साँचों  के  कानों , आनन  में लावा   है।
सच्चे   के   ऊपर   झूठे   का दावा   है।।
थोथे    आदर्शों   का   नित्य दिखावा  है।
झूठ  आँकड़ों  में  ही  काशी काबा  है।।

💐 शुभमस्तु !

20.07.2020 ◆6.30 अप.

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