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✍ शब्दकार©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सोने की खूँटी पर
टाँग रखे हैं
शो -केस के अंदर
सजावट के लिए
दिखावट के लिए,
जिसे कहती है
ये दुनिया
सिद्धान्त,
औऱ वे सिद्धांतवादी,
नहीं विश्वासघाती।
हो जाता है
जहाँ सिद्ध का
सिद्धि का अंत
है वही सिद्धान्त!
यहाँ तो सभी हैं
सिद्ध महासिद्ध
एक से एक प्रसिद्ध,
उठाया गया पर्दा
तो निकल पड़ा गिद्ध!
सिद्धांतों से बिद्ध!
रुद्ध अवरुद्ध,
नेता अधिकारी
पीत चीवर धारी
प्रबुद्ध,
सब गड्ड मड्ड!
सिद्धान्तशाला
सिद्धांत का मसाला
सिद्धान्त गुरु,
नहीं उपलब्धता दुरूह,
हर क्षण शुरू ,
गली -गली
नगर -नगर
डगर -डगर
ज्यों कली पर भ्रमर,
मधुप्रेमी,
पद सेवी।
देव या देवी!
सिद्धान्त कुछ और
काम कुछ और
करता है कौन गौर?
सब स्वार्थ के हितार्थ,
वादों में एक वाद
सिद्धान्तवाद।
रसीद लिख दी
ताकि समय पर दे काम,
वैसे सब
मनमानी का इनाम,
क्यों करे कोई
आँय -बाँय
चाँय -चाँय
अन्यथा वही बस
बची ठांय ठांय!
हाय ! हाय!!
देखते रहिए इन्हें
खूँटी पर टाँगे हुए
सजे हुए
मजे हुए!
ये मात्र देखने के लिए हैं,
प्रदर्शन के लिए,
आँखें कर बन्द
होठों को सिये,
वही करना है,
डर के रहना है,
जो चाहें ये
सिद्धान्तवादी
कर कर मुनादी
भाड़ में जाए
फरियादी,
ये बिकाऊ नहीं हैं,
इनके अंदर
सब 'शुभम' है!
सही- सही है,
पर बाहर की
असल बात
कुछ और ही है!
है कुछ और ही,
और ही है कुछ।
शुभमस्तु !
16.07.2020 ◆6.30 अप.
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