गुरुवार, 30 जुलाई 2020

सावन आगि लगाय गयौ [ गीत ]

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✍ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग- अंग  सुलगाइ दयौ री।।

जब से भए   सजन परदेशी।
सखियाँ बतरावें  कछु ऐसी।
कासे पिय कौ नेह लग्यौ री।
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग -अंग सुलगाय दयौ री।।

चलत   झकोरे  बरसें बुँदियाँ।
कसि-कसि जावै मोरीअँगिया
छलकि-छलकि रस घाय कियौ री।
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग-अंग सुलगाय  दयौ री।।

दिवस  न  चैन  नींद नहिं रैना।
कासे  बतराऊँ   दुःख भैना।।
विष  वियोग हररोज़ नयौ री
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग -अंग सुलगाय दयौ री।।

सखियाँ झूलति गिरत फुहारें।
गावति कजरी  गीत मल्हारें।।
बीजु न प्रीतम  एकु  बयौ री।
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग -अंग सुलगाय दयौ  री।।

प्यास  बुझी धरती की सारी।
हरी- हरी सिग खेती  -बारी।।
बालम आए न घरू छयौ री।
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग -अंग  सुलगाय दयौ री।।

चिठिया नाहिं  सँदेशौ आयौ।
कहूँ बलम  मेरौ   भरमायौ।।
अचरजु मेरे  मनहिं भयौ री।
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग -अंग सुलगाय दयौ री।।

सूधी   आँखि फड़कती मेरी।
सपने    बुरे   सताएँ  अँधेरी।
'शुभम'न मानत बलम कह्यौ री।
सावन आगि लगाय गयौ री।
अंग -अंग सुलगाय दयौ री।।

💐 शुभमस्तु !

28.07.2020◆ 7.45 अप.

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