◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
तेरे जिस काम का अंजाम बुरा है।
हुआ है बदनाम वह नाम बुरा है।।
किसी चेहरे के उस पार नीम अँधेरा,
गोरा हो भले चाम वह चाम बुरा है।
पहचानता नहीं हो आदमी आदमी की तरह,
रहना नहीं उस धाम वह गाम बुरा है।
जिसको नहीं पहचान कोई भी वक्त की,
बिना कोई काम किए वह आराम बुरा है।
मशगूल हैं वे काम में पर काम है कहाँ!
बेअंजाम जो काम हो वह काम बुरा है।
लेता नहीं है आपको आगोश में अपने,
ऐसा भी पीना व्यर्थ है वह जाम बुरा है।
बाहर से पीला महकता लल चा उठा 'शुभम',
काटा तो बदबूदार है वह आम बुरा है।
💐 शुभमस्तु !
04.07.2020 ◆4.15 अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें