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✍ शब्दकार©
💦 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नगपंचमी का दिवस,आया पूजो नाग।
पर्व जिसे कहते सभी,गाँव शहर वन बाग।।
शेषनाग के शीश पर,टिका धरा का भार।
शिव शंकर के कंठ में,नाग सुशोभित हार।।
शेषासन पर सोहते,श्रीविष्णु भगवान।
पाँव पलोटति हैं रमा, सागर में शुभमान।।
नागों से नित होड़ ले,नर की बदली नीति।
डंसने को तैयार हैं, आपस मे कर प्रीति।।
बाहर से रक्षक बने,भीतर भक्षक नाग।
रह नागों के बीच में, बचे वही सौभाग।।
नित नागों को पूजिए, रहते चारों ओर।
यहाँ वहाँ वे रेंगते,धरती के हर छोर।।
भय पूजित हर काल में,कहो साँप या नाग।
भस्म करे जो आपको, कहते उसको आग।।
भय से बढ़ती प्रीति ये,भय की पूजा रोज।
भय के भरते भाव वे,भय से होते भोज।।
कौन पूजता केंचुआ,गुबरैला को खोज।
नागों के माला पड़े,देख रहे तुम रोज।।
टेढ़े ग्रह सब पूजते,टेढ़े का अति मान।
सीधे को क्या पूजना, करे नहीं नुकसान।।
नाग राग गा ले 'शुभम',नागों का संसार।
डंसता कभी न केंचुआ,नाग न करे उधार।।
💐 शुभमस्तु !
25.07.2020 ◆2.10अप.
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