गुरुवार, 30 जुलाई 2020

कलम का सिपाही [अतुकान्तिका]

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✍ शब्दकार©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शब्द -साधना के 
सच्चे साधक,
आराधक,
लमही वाराणसी की
धरती की
 माटी  से जन्मे,
धनपतराय कहाये,
'सेवासदन' , 'प्रेमाश्रम',
'रंगभूमि', 'निर्मला ',
:गबन', 'कर्मभूमि',
'गोदान' उपन्यास से
उपन्यास -सम्राट बन
साहित्याकाश में छाए।

धरती की माटी से
जुड़ी कहानी त्रिंशत,
हिंदी उर्दू की 
यथार्थ बयानी,
आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के साधक, संपादक,
सच्चे साहित्यिक ,
नाटककार , निबन्धकार,
अनुवादक , बाल साहित्यिक,
संस्मरण- लेखक,
नवाबराय से 
मुंशी प्रेमचंद  बन आए।

मुंशी प्रेमचंद के बोल 
रहे हैं 
साहित्य जगत में
अपनी वाणी का रस घोल,
'साहित्य नहीं 
चलता पीछे
राजनीति या
देशभक्ति के,
वह रहता है
आगे -आगे
चलता देकर प्रकाश
बनता मशाल,
सिर अपना
उन्नत प्रशस्त कर।'

युग प्रवर्तक
संवेदनशील
सचेत वक्ता,
विद्वान युग -युग के
अनुसंधानक,
सच्चे नायक ,
सुत अमृतराय के
पिता 
'कलम के सिपाही'
नमन तुम्हें
शत -शत वंदन,
प्रेम के चंद 
धवल,
अमर यशः काय अमल।

💐 शुभमस्तु ! 

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