शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

गुरु [ कुण्डलिया]


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✍शब्दकार©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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                          -1-
पहली गुरु माँ को नमन,आदर सहित प्रनाम।
लाई मुझको अवनि पर,देकर भगवत नाम।।
देकर भगवत नाम,मुझे पोशा औ' पाला।
दिए तोतले बोल,खिलाया प्रथम निवाला।।
अनगिनती उपकार,पुत्र की बाहें गह ली।
शुभम किया उद्धार,मात मम गुरु है पहली।

                           -2-
मुझसे जो गुण में बड़े,गुरु मम पूज्य महान।
मात पिता शिक्षक सभी,सब का है अहसान।
सबका है अहसान,ज्ञान के नित प्रति दाता।
 शुभम सदा ही शीश,चरण में उन्हें नवाता
गुरु दिखलाते राह,सदा ही शुभ युग युग से।
वे सब मेरे पूज्य,बड़े हैं जो गुरु मुझसे।।

                        -3-
महिमा गुरु की जानना मानव हित अनिवार्य
उचित राह दिखला रहा करना  ही शुभ कार्य
करना नित शुभ कार्य,पतन से सदा बचाता।
हो वर्षा का कोप,लगाता सुंदर छाता।।
गुरु की प्यारी सीख सिद्धियाँ सारी लघिमा।
मिल जाती हैं आप शुभं सत गुरु की महिमा

                            -4-
भगवा में भगवान हों, नहीं कभी अनिवार्य ।
ज्ञान कर्म से गुरु बनें, करते नित सत कार्य।।
करते नित सत कार्य, वही ईश्वर दिखलाते।
भूले कोई राह,वही मंजिल पहुँचाते।।
गुरु ही श्रेष्ठ महान,नहीं वे शचिपति  मघवा।
'शुभम' न गुरु का हेत, रँगे कोई तन भगवा।।

                          -5-
साँचा गुरु मिलता नहीं,ढोंगी मिलें अनेक।
स्वयं नरक में गर्क हैं,ज्ञान बाँटते नेक।
ज्ञान बाँटते नेक, शिष्य को मेष बनाते।
दिखला अंधी राह,नरक के कूप गिराते।।
कैसे हो उद्धार,'शुभम'गुरु ही है काँचा।
छान फूँककर देख,जगत में गुरु है साँचा।।

💐 शुभमस्तु !

02.07.2020◆8.00 पूर्वाह्न।

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