शनिवार, 25 जुलाई 2020

नागपूजा दिवस [ व्यंग्य ]

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✍ लेखक 
© 🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम' 
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आप सभी जानते हैं कि आज नाग पूजा का पावन पर्व 'नागपंचमी 'है।इस देश में चील ,कौवे,राक्षस,कुत्ते, नाग आदि के पर्व समय -समय पर मनाए जाते हैं।नागों की महिमा से कौन परिचित नहीं है। भारतीय संस्कृति में नागों का अपना विशेष महत्त्व है। 

 कहा जाता है कि हमारी धरती माँ को शेषनाग महाराज जी ने अपने हजार फणों पर टिका रखा है। जब -जब ये नाग देवता महाराज करवट लेते हैं ,तब -तब पृथ्वी हिलती है , जिसे भूगोल की भाषा में भूकंप,भूडोल,भू चाल आदि कहा जाता है।हमारे त्रिदेवों :ब्रह्मा , विष्णु और महेश में पहले प्रजापति को छोड़कर प्रजापालक और प्रजाघालक श्रीविष्णु जी और श्री शिवजी को नागों से अति स्नेह है। वह तो क्षीरसागर में अपनी प्रिया श्री लक्ष्मी के साथ शेष शैया पर आनन्द मग्न रहते हैं।उधर माता लक्ष्मी जी उनकी सेवारत रहते हुए उनके चरण कमल को पलोटती रहती हैं।अरे!भई आपको क्या आपत्ति है, वे उनके पतिदेव हैं,वे जो चाहें करें। शेषनाग महाराज उनकी धूप वर्षा से भी रक्षा करते हैं। यद्यपि वे हर समय सागर जल में ही शेषशायी रहते हैं। दूसरे हैं आदिदेव शिव शंकर जी , उन्होंने तो नागों की माला ही बना रखी है।हमारी संस्कृति की नाग प्रियता के ये सशक्त उदाहरण हैं , तो फिर भला हम क्यों पीछे रहें। इसलिए हम नागों से अपना प्रेम प्रदर्शित करने के लिए उन्हें ज़्यादा नहीं तो वर्ष में एक बार खुलेआम दूध पिला ही लेते हैं, और अपनी नागप्रियता की तसल्ली कर लेते हैं।

हमारी नाग प्रियता का अंत यहीं पर नहीं हो जाता। चूँकि नाग सेवा हमारी संस्कृति का प्रमुख अंग है।इसलिए हमने नागों को पालना भी शुरू कर दिया है।जब हमारे पांडु - पुत्र महावीर अर्जुन जी नाग कन्या उलूपी से विवाह कर उसे अपनी सहधर्मिणी बना सकते हैं , तो क्या आज के धनुर्धारी उनसे प्रेम भी नहीं कर सकते ? ये पालित नाग कभी -कभी जनता की दृष्टि से ओझल भी रहते हैं।जब सही समय आता है तो दुश्मन को डंसने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे ही विषम समय के लिए इन्हें दूध पिलाया जाता है। काजू , किसमिस , बादाम , छुहारे के भोग लगाए जाते हैं। अर्थात उन्हें हर समय संतुष्ट ,पुष्ट , स्वस्थ और मस्त रखा जाता है। नाग कहें तो नागनाथ और साँप कहें तो सांपनाथ।कुछ रुतवेदार लोगों के द्वारा इन्हें भगवान शंकर की तरह उन्हें अपनी आस्तीन में शुभ स्थान देकर सुशोभित किया जाता है।जिन्हें मुहावरे की भाषा में आस्तीन के साँप कहा जाता है।आस्तीन के साँपों की एक विशेषता यह भी देखी जाती है , कि वे प्रायः अपने पालने वाले को ही अपना पहला शिकार बनाते हैं। इसलिए इनसे सावधान रहने की आवश्यकता होती है। 

 साँपों या नागों के विषय में यह कथन भी बहुत लोकप्रिय है कि इनको चाहे जितना दूध पिलाओ , अवसर मिलने पर ये पिलाने वाले को भी डंसने से नहीं चूकते। पर क्या किया जाय ,हम अपनी पुरानी नाग संस्कृति को भी सम्मान देने से नहीं चूक सकते। आज के युग में साँप या नाग पालने से बेहतर यह समझा जा रहा है कि क्यों न स्वयँ ही नाग बना जाए ,तो सबसे बेहतर । इसलिए समाज में नागों की संख्या निरंतर बढ़ ही रही है। साँप या नाग बन जाने या पालने के अनेक लाभ हैं। 

जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं।सीधे ग्रहों की पूजा अर्चना करने से बेहतर यह माना जाता है कि सीधे से कोई खतरा नहीं है। इसलिए समाज में साँप /नाग जैसे टेढ़े चलने वालों को ज्यादा पूजा जाता है।उन्हें अधिक सम्मान अधिक दिया जाता है। वे माननीय भी अधिक होते हैं। क्या आपके पास ऐसा कोई उदाहरण है कि सीधे -साधों को पूजा गया हो? देश और समाज में कभी केंचुए नहीं पूजे गए।उनको सड़ाकर खाद अवश्य बना ली गई हो। पर पूजा नहीं गया। कभी 'केचुआ पर्व 'नहीं मनाए गए।विशेष पर्वों पर राम और कृष्ण के नाम पर रावणों , विभीषणों , कंसों को याद करना कभी नहीं भूले। क्योंकि वे टेढ़े थे। यदि वे लकड़ी की तरह सीधे होते तो काट डाले गए होते ,पूजे नहीं जाते। यही कारण है कि देश में 'केंचुआ पर्व ', 'गिजाई पर्व', 'वीर बहूटी पंचमी', 'गधा एकादशी', 'कबूतर दिवस', 'दादुर दशमी', 'मछली द्वादशी', आदि नहीं मनाए जाते। केवल' नाग पंचमी ' मनाई जाती है। बढ़ती हुई नाग संख्या को देखते हुए इसका महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। 
💐 शुभमस्तु!
 25.07.2020 ◆7.00अप.

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