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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रंगों में ही भंग हुए हैं।
खिले फूल ही संग हुए हैं।।
औरों की ख़ातिर जो जीते,
वहीं - जहाँ में तंग हुए हैं।
अमन -चैन से जो रहते हैं ,
उनसे ही तो जंग हुए हैं।
औलादों के बदले चेहरे ,
देख उन्हें हम दंग हुए हैं।
सजा-सँवारा जिनको जीभर,
मन उनके बदरंग हुए हैं।
जिनको हमने ढंग सिखलाये,
हमसे वे बेढंग हुए हैं।
पाला -पोसा जिनको दिल से,
'शुभम' वही अब नंग हुए हैं।
💐 शुभमस्तु !
26.07.2020 ◆12.30 अप.
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