रविवार, 26 जुलाई 2020

ग़ज़ल

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✍ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रंगों     में    ही  भंग   हुए हैं।
खिले  फूल  ही संग  हुए  हैं।।

औरों  की  ख़ातिर  जो जीते,
वहीं - जहाँ  में   तंग   हुए  हैं।

अमन -चैन    से  जो रहते हैं ,
उनसे   ही   तो   जंग हुए  हैं।

औलादों     के   बदले  चेहरे ,
देख  उन्हें  हम दंग    हुए  हैं।

सजा-सँवारा जिनको जीभर,
मन   उनके   बदरंग  हुए  हैं।

जिनको हमने ढंग सिखलाये,
हमसे    वे    बेढंग    हुए  हैं।

पाला -पोसा जिनको दिल से,
'शुभम'  वही अब नंग हुए हैं।

💐 शुभमस्तु  !

26.07.2020 ◆12.30 अप.

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