गुरुवार, 16 जुलाई 2020

यदि मैं दादुर होता! [ बालगीत ]

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✍ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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यदि मैं   जल का दादुर होता।
पोखर  में   नटनागर   होता।।

जब मन होता जल में जाता।
कभी सतह पर मैं  उतराता।।
कभी   धरा  पर उछला  होता।
यदि मैं जल का दादुर  होता।

जब पावस की ऋतु  है आती
बादल   से   बूँदें    बरसाती।।
नहीं  कभी  रातों  में  सोता।
यदि मैं जल का दादुर होता।।

रात -रात  भर टर-टर करता।
पोखर भर में हलचल भरता।
दादुर - सुर - संगीत सँजोता।
यदि मैं जल का दादुर होता।।

भूजलचारी   मुझे    बनाया।
धरती - पोखर सभी सुहाया।।
कभी  नहाता   देह भिगोता।
यदि मैं जल का दादुर होता।।

हरी   घास   में  रंग बदलता।
पंक धरा  के सँग मैं ढलता।।
काँटे नहीं  'शुभम'  मैं बोता।
यदि मैं जल का दादुर होता।।

शुभमस्तु  !

13.07.2020 ◆6.00अप.

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