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✍ शब्दकार©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-१-
छाया-रवि के पुत्र शनि,शतशः नमन प्रणाम।
कष्ट हरो मेरे सभी,देकर शुभ परिणाम।।
-२-
शनै शनै चलते सदा,नाम पड़ा शनि नेक।
पिंगल कृष्णा वभ्रु तुम,देना शुभं विवेक।।
-३-
छायानंदन रौद्र तुम,दुखभंजन शनिदेव।
बार -बार विनती करें,करते हैं तव सेव।।
-४-
अष्ट वाहनों पर चढ़े,गज मृग कागा श्वान।
गर्दभ भैंसा गिद्ध भी, और अश्व शनि शान।।
-५-
कर्मों के फल दे रहे,प्रतिक्षण मानव भीम।
न्यायकारिता में बड़े,हे कोणस्थ असीम।।
-६-
प्रकृति संतुलन के धनी,नील वर्ण शनिदेव।
स्वामी अनुराधा नखत,हम करते तव सेव।।
-७-
रवि समाप्त होते जहाँ,शनि सीमा प्रारंभ।
सीमाग्रह शनिदेव हैं, राशि मकर औ'कुंभ।।
-८-
नवग्रहों में श्रेष्ठ शनि,धरते हैं अष्टांक।
उदर जाँघ में बस रहे,जानें शुभम निशंक।
-९-
सत असत्य के भेद को, समझाते शनिदेव।
गुरु शिक्षक कीभूमिका, नमन करें नित सेव।
-१०-
कहलाते शनि मंद भी, सौरी सूरज - पूत।
कृपा करें नर पर कभी ,देते सु-धन अकूत।।
-११-
चार चरण शनिदेव के,लोहा चाँदी स्वर्ण।
ताँबा चौथा चरण है,तन का श्यामल वर्ण।।
-१२-
चार भुजाएँ वभ्रु की,मुकुट सुशोभित माथ।
रत्न जड़े सुंदर वहाँ, गदा त्रिशूल सु हाथ।।
-१३-
क्षण में राजा रंक हो, रंक सँभाले राज।
बिगड़े सब कारज बनें,शनि का ऐसा साज।।
-१४-
पर्वत को तिनका करें,तिनका बने पहाड़।
शनि जी की शुभ दृष्टि से शीतल होता भाड़।
-१५-
भक्तों के पालक प्रभो,नमन तुम्हें शत बार।
मुझको अघ से दूरकर,रखना सदा उबार।।
💐 शुभमस्तु !
04.07.2020 ◆10.10 पूर्वाह्न।
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