गुरुवार, 23 जुलाई 2020

सावन-फागुन [अतुकान्तिका]

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✍ शब्दकार©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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झर -झर
नभ से जल
बरसाता सावन
अति पावन
मन भावन,
शस्य श्यामला
वसुधा का कण -कण
हरिताभामय
सृष्टि चराचर
जन गण मन।

फागुन में
रंग बरसे
जन -जन हरसे
सम्पूर्ण प्रकृति सरसे,
मधु माधव ऋतु का
स्वागत अभिनन्दन
नित -नित वंदन
शत-शत नमन।

विरहिन का
मन तरसे,
 जब-जब 
सावन बरसे,
फागुन में
रंग के झरने भरते,
उद्दीपक कारण 
सुख शांति नसावन
रति -काम संचरण
अंग -अंग।

पिया नहीं 
जब गेह,
नहीं है पास
तिया के नेह,
तपन ही तपन 
अगन ही अगन
सावन या
मन भावन फागुन।

विरहिन का सावन
निज प्रीतम सँग
तन-मन,
धरावत प्यास
मलिन मुख उदास,
जगाती आस,
नव बीज बिंदु का
नवल अंकुरण।

सुखद स्फुरण
तन से मन से 
वरण,
निरावरण,
अनुसरण
मौन पायल किंकिण
अनुरणन,
सुखद संतरण
तन -मन का
कण -कण
हरित सावन में
'शुभम' धरिणी का
तृण -तृण
सावन -फागुन।

💐 शुभमस्तु !.

23.07.2020 ◆1.00अप.

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