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✍ शब्दकार©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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झर -झर
नभ से जल
बरसाता सावन
अति पावन
मन भावन,
शस्य श्यामला
वसुधा का कण -कण
हरिताभामय
सृष्टि चराचर
जन गण मन।
फागुन में
रंग बरसे
जन -जन हरसे
सम्पूर्ण प्रकृति सरसे,
मधु माधव ऋतु का
स्वागत अभिनन्दन
नित -नित वंदन
शत-शत नमन।
विरहिन का
मन तरसे,
जब-जब
सावन बरसे,
फागुन में
रंग के झरने भरते,
उद्दीपक कारण
सुख शांति नसावन
रति -काम संचरण
अंग -अंग।
पिया नहीं
जब गेह,
नहीं है पास
तिया के नेह,
तपन ही तपन
अगन ही अगन
सावन या
मन भावन फागुन।
विरहिन का सावन
निज प्रीतम सँग
तन-मन,
धरावत प्यास
मलिन मुख उदास,
जगाती आस,
नव बीज बिंदु का
नवल अंकुरण।
सुखद स्फुरण
तन से मन से
वरण,
निरावरण,
अनुसरण
मौन पायल किंकिण
अनुरणन,
सुखद संतरण
तन -मन का
कण -कण
हरित सावन में
'शुभम' धरिणी का
तृण -तृण
सावन -फागुन।
💐 शुभमस्तु !.
23.07.2020 ◆1.00अप.
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