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✍️ शब्दकार ©
🌎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सदा रहे गतिशील जो, वही जगत है मीत।
रुका न रुकना है कभी,चली आ रही रीत।।
समझ नहीं तेरे बिना, रुक जाए संसार।
यथापूर्व जग की चले,गति सुचारु सरकार।।
कितने आकर जा चुके, आएंगे बहु और।
बूँद -बूँद घट रिक्त हो,फिर भरने का दौर।।
कभी किसी अस्तित्व से,रिक्त न हो संसार।
यह तेरी अज्ञानता, तेरे सिर सब भार।।
क्रम यह आवागमन का,रीति सनातन एक।
तेरा बस अधिकार ये,करनी कर ले नेक।।
आज भरा कल रिक्त हो,घड़ा नीर से मीत।
फिर से भर जाता वही, जीवन का यह गीत।
कल क्या हो यह जानना,सदा असंभव तथ्य
भावी के सत गर्भ में,छिपा हुआ ये सत्य।।
अगले पल के ज्ञान से,जो मानव अनभिज्ञ।
मूढ़ अहंता में पड़ा,कहता मैं ही विज्ञ।।
देह मात्र साधन मिला,करने को बहु काज।
नहीं मात्र ये साध्य है,रहे न कल जो आज।।
साधन बिना न साध्य का,चले न पग भी एक
साधक साधन को करे,सात्विक सुदृढ़ नेक।।
'शुभं'अतिथि संसार का,नहीं सुनिश्चित काल
आया है तो जायगा,जब तक रोटी - दाल।।
🪴शुभमस्तु !
31.01.2023◆4.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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