472/2023
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छंद -विधान:
1.08 सगण (112×8)+गुरु(2)=25 वर्ण।
2.समतुकांत चार चरण का वर्णिक छंद
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
घर में दर में बहु दीप जलें,
चहुँ ओर प्रकाश हुआ बहुतेरा।
तम शेष नहीं उजियार बढ़ा,
अवनी नभ में बहु तेज बिखेरा।।
सबके मुख पै शुभ हास नया,
लगता निशि में यह आज सवेरा।
सरिता तल पै बहु दीप बहें,
तनिकों महि पै नहिं शेष अँधेरा।।
-2-
सब बालक वृद्ध युवा हरसें,
नर-नारि मनावत आज दिवाली।
घर स्वच्छ किए छत आदि सजे,
सब धूल मिटी इठलावति नाली।।
लड़ियाँ लटकें सब द्वारनु पै,
फुलझाड़ि सिहाइ रही मतवाली।
अँचरा तर दीपक वारि चली,
ब्रजनारि सुनावति गीत न गाली।।
-3-
शिव -पूत गणेश सुसंग रमा,
पुजते -सजते सित खील खिलौना।
बहु माल सजीं गल बीच नई,
सज वंदनवार सुपुष्प बिछौना।।
नव वस्त्र धरे तन पै किलकें,
सब बालक नाचत झूमत छौना।
मधु मोदक बाँट रही घरनी,
अति तेज प्रकाशित है हर कौना।।
-4-
चमकें दिवला छत पै घर में,
शरमाइ रहे नभ के सब तारे।
अब चाँद नहीं नभ में चमके,
सब जोर लगाइ कहें हम हारे।।
फिर लौट चले प्रिय राम वही,
अब चौदह वर्ष भए वनमा रे।
विमला शुभ हर्ष विमोहित है,
जयगान करें तम तोम उजारे।।
-5-
यह मावस कातिक की शुभता,
भरि दीपक हर्ष लिए निखराई।
नभ भूतल सिंधु शुभी सरिता,
अति दीपित ज्योति नई बिखराई।।
नर -नारि समोद सुछंद नचें,
खग ढोरहु मोद भरे अति भाई।
शुभता बरसे धन -धाम महा,
शुभ लाभ गणेश रमा घर आई।।
● शुभमस्तु !
31.10.2023◆3.45प.मा.
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