शनिवार, 21 अक्तूबर 2023

ग़ज़ल ●

 460/2023

  

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●  ©शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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रूप की धूप का कीजिए,गुमान क्या ?

उतर ही जाएगी उसका,उठान क्या??


रंग-रोगन    से  चहकती  चमड़ी   तेरी,

खाक  होनी  है  पल में, निशान   क्या?


तू    कौन  है  किसलिए  आया है    यहाँ,

हुआ  नहीं  है  अभी  तुझे, संज्ञान  क्या ?


माटी   के   बने   पुतले  हस्र भी    माटी,

जान  पाया  न अभी तू ,  जहान    क्या ?


बनाया जिस रब ने उसे भी जान 'शुभम्',

चार  दिन  की   है चाँदनी,उनमान  क्या?


● शुभमस्तु !


21.10.2023◆ 7.45आ०मा०

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