बुधवार, 11 अक्तूबर 2023

नव अंकुर है बालिका ● [ दोहा ]

 449/2023

           

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नव अंकुर है बालिका,सृजक सृष्टि का बीज।

विधना की शुभ देन है,मन में देख   पसीज।।


भरे उजाला बालिका,माँ,पति घर   उजियार।

सदा लुटाती अंक से,नित नारी  बन   प्यार।।


शिक्षा का  दीपक  सदा,देता नवल  प्रकाश।

मीत बालिका को पढ़ा,करती तम का नाश।।


फुलवारी है बालिका, महकाती  नित फूल।

देख - रेख  पूरी  रहे, ये  मत जाना   भूल।।


बालक हो या बालिका,सबका उचित महत्त्व।

बढ़ती  सारी सृष्टि ये,बीज रूप    दो   तत्त्व।।


पहली गुरु माँ बालिका,नारी या   नर  एक।

शिक्षित होना चाहिए,सद्गुण भरे   अनेक।।


नहीं बालिका की करें, समुचित जो परिवार।

देख-रेख ज्यों आम की,कीड़े पड़ें   हजार।।


चरितवान नारी बने, कुलदीपक  नर  एक।

पढ़ें  बालिका-बाल  भी,पाएँ ज्ञान   अनेक।।


नर - नारी   से सृष्टि का,चलता है   संसार।

भूल न जाना बालिका,शिक्षालय का द्वार।।


केवल बालक से नहीं,बनता सृष्टि   स्वरूप।

सदा बालिका धारिणी,बीज सृजन का यूप।।


बनें वीर - वीरांगना,बाल -  बालिका   सर्व।

प्रेरक   शिक्षा  चाहिए ,साहस जगे    सगर्व।।


● शुभमस्तु !


11.10.2023◆5.30आ०मा०

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