470/2023
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● © शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बंद आँख से देख न सपना।
पड़ता चक्षु खोलकर तपना।।
जिनके मन में आग लगी है।
करते पूरा सपना अपना।।
माल बिना श्रम वे पा जाएँ।
आता ऐसी माला जपना।।
नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
नहीं चाहता मानव झुकना।।
चोरी का स्वभाव मत अपना।
पुलिस-दंड तोड़ेगा टखना।।
श्रम की रोटी अर्जित करता।
जाने वही स्वाद को चखना।।
'शुभम्' राह टेढ़ी मत चल तू।
लेश न तुझको पड़ना झुकना।।
●शुभमस्तु !
30.10.2023◆6.00आ०मा०
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