मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

आने वाली है दीवाली● [ गीत ]

 471/2023

 

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● © शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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घर -घर दर पर

दीप जलेंगे

आने वाली है दीवाली।


निर्धन कैसे

करे उजेरा

दाल- भात का जिसको टोटा।

मोटा खाए

पहने मोटा

फूटे बर्तन   टूटा  लोटा।।


जुटा न पाता

रोटी घर की

होती है दीवाली काली।


वस्त्र नहीं तन

को ढँकने को

टूटी छान मड़ैया झीनी।

मैली कथरी

लगी थेगली

पत्नी की धोती वह पीली।।



सूरज झाँके

छत के ऊपर

गिरती-सी लगती है चाली।


आतिशबाजी

धूम -धड़ाका

उसे न भाता कान फोड़ता।

कैसे दीपक

जला सके वह

धोती निशि में उठा ओढ़ता।।


आता जब भी

पर्व दिवाली

लगती उसको कड़वी गाली।



 बड़े - बड़े ये

नारे सुन -सुन

कोरी सब विकास की बातें।

कान पके हैं

हर गरीब के

लगती हैं ज्यों मारक घातें।।


रिश्वत में ये

घटिया चावल

बँटवाते करते बेहाली।


मौसम आया 

है वोटों का

'चिड़ियों' को दाना खिलवाना।

रीति पुरानी 

नेताओं की

छू -छू चरणों में झुक जाना।।


'शुभम्' सत्य यह

तथ्य आज का

समझें कीड़ा ग़जबज नाली।


●शुभमस्तु !


31.10.2023◆8.00 आ०मा०

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