435/2023
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● © शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शुद्धि - सफाई में सदा, भेद बड़ा है मीत।
शुद्धि श्रेष्ठ होती बड़ी,गाओ उसके गीत।।
जा होटल की मेज पर, करके देखें शोध।
शुद्धि नहीं मिलती वहाँ,मात्र सफाई - बोध।।
देवालय में शुद्धता, मिलती पावन नित्य।
स्वतः सफाई भी वहीं, दिखलाती औचित्य।।
झाड़ू लेकर हाथ में, होता नाटक खूब।
नहीं सफाई नाम को,परिसर में है दूब।।
फोटो भी खिंचवा लिए,नाम छपा अख़बार।
नहीं सफाई है कहीं, नेताजी के द्वार।।
करें सफाई देश की,नेता गण घनघोर।
गला न झाँकें आप वे, चोर मचाए शोर।।
नहीं मित्र नाटक करें,करें सफाई रोज।
छाया में दिखला रहे,कृत्रिम बनवा पोज।।
चोर सफाई कर रहे, चुरा देश का अर्थ।
गबन डकैती नित्य ही,मानव कूर - कदर्थ।।
दूध, दही, धनिया सभी,करें मिलावट रोज।
जेब - सफाई वे करें,दूषित जन के भोज।।
वास शुद्धता में करें,सदा इष्ट भगवान।
मात्र सफाई क्या करे,दिखलाता नर शान।।
प्रथम सफाई मूढ़ नर,मन की कर अज्ञान।
व्यर्थ दिखावा क्या करे,वहाँ नहीं भगवान।।
●शुभमस्तु !
04.10.2023◆6.30आ०मा०
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