गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

गुड़ -चोर' ● [ व्यंग्य ]

 458/2023

  

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● © व्यंग्यकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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'चोरी का गुड़ ज्यादा मीठा' कहावत यों ही नहीं बन गई।जिसने भी पहली बार चुरा कर गुड़ खाया होगा ,उसे यह अनुभव हुआ होगा कि चोरी का गुड़ स्व- परिश्रम के गुड़ से ज्यादा ही मीठा होता है।उस गुड़ -चोर द्वारा किया गया यह शोध कार्य अतीत काल से एक प्रसिद्ध कहावत बन गया ।जिसका अनुकरण और अनुसरण दुनिया भर के चोर -गण करते आ रहे हैं।समय की धारा में कुछ कहावतें अपना दम तोड़ देती आ रही हैं। किंतु इस कहावत ने तो केवल गुड़ की मिठास को नहीं बढ़ाया ,वरन सभी प्रकार की चोरियों की मिठास की गुणवत्ता में अभिवृद्धि की है।

                यदि   आप   अन्यथा   ग्रहण   न  करें  तो  एक ऐसी कहावत का नमूना पेश करना चाहूँगा जो किसी समयावधि में भले सत्य रही होगी ,किन्तु आज वह पूर्णरूपेण निष्प्राण हो चुकी है।वह कहावत है :'कूकर बाँभन एक सुभाऊ,अपनी जाति देख गुर्राऊ।' यदि विश्वास न हो तो अनुभव करके देखा जा सकता है। इससे ज्यादा क्या लिखूँ , लाल मिर्च का भाव बहुत ज्यादा हो गया है।व्यंग्य यह नहीं चाहता कि 'यह' किसी को लगे।कष्ट हो। सम्प्रति हमारा लक्ष्य लाल मिर्च है और न "एक सुभाऊ" है। हमारा लक्ष्य मीठे -मीठे गुड़- चोरों की चारु चर्चा है।

             मैं गुड़ - चोरों की बेतहासा वृद्धि की चर्चा कर रहा था। अब चोरी की बात की जाए तो बेचारा गुड़ क्या चोरी कराएगा। अब तो चोरों के लिए कितने ही खजाने खुल गए हैं। वे यों ही खुले नहीं पड़े कि कोई भी भर लाएगा।दिल की चोरी, नैन की चोरी, चैन की चोरी, कामचोरी,नाम -चोरी,काव्य-चोरी,भाव-चोरी, दाँव -चोरी आदि अनेक प्रकार की चोरियाँ हैं ।अब माखन चोरी और दधि-चोरी सुनने को नहीं मिलेगी। वह कृष्ण कन्हैया का अपना लीला-चौर्य था ,जो उनके साथ ही विदा हो गया। अब रिफाइंड और मिलावटी घी- तेल के युग में न वह दूध-दही और न नवनीत का मुख लेपन। इस घासलेटी युग में इन्हें भला चुराएगा भी कौन?अब तो सीधे भैंस समेत खोया खाने का समय है।इसलिए क्या भैंस वाले और क्या टंकीधारी ! सभी पानी में दूध मिलाकर पानी को ही पवित्र करके उसे दूध बनाकर धड़ल्ले से बेच रहे हैं।और तो और अब यूरिया ,रिफाइंड , वाशिंग पावडर तथा रसायनों से दूध का निर्माण कर रहे हैं।

                  नकली असली से भी ज्यादा असली हो गया है। ये गुड़ -चोरी से भी ज्यादा मधुरता देने वाली चोरी है। एक और प्रसिद्ध कहावत है कि 'जो खांड खूंदे वही खांड खाए' और कोई तो देख -देख तरसाए! इसी कहावत से प्रेरित होकर कार्यालयों में गबन होने लगे हैं।पूँजीपति बैंकों से लोन लेकर विदेशों में उड़नछू हो रहे हैं। गरीब आदमी इस चीनी के जमाने में गुड़ भी चुराने से रहा ! चीनीखोर और मेवाखोर तो देश को चुरा -चुरा कर खांड खूंद का आनन्द ले रहे हैं। यह युग सीमेंट,बालू,सरिया,रोड़ी यहाँ तक कि सड़कें,पुल, बहुमंजिला इमारतें,नौकरियाँ, बीमा कंपनियां, रेलगाड़ियाँ, पटरियाँ,स्टेशन आदि खाने -पचाने का है। यह तो चोर- चोर की अपनी प्रजाति विशेष पर निर्भर करता है कि उसका हाजमा कितना मजबूत है।जहाँ बल है ,वहीं बरजोरी भी है। यह कृष्ण -गोपियों जैसी बरजोरी नहीं। यह भी प्रकारांतर से गुड़ -चोरी ही है।'अंधा बाँटे रेवड़ी फिर -फिर घरकेन दे।' यही हो रहा है। ऊँट की चोरी निहुरे -निहुरे नहीं होती। सब जानते हैं कि जबरा मारे और रोने भी न दे।

                 आज के युग में तो हमारे चिकित्सक गण भी गुड़ - चीनी से परहेज़ बता रहे हैं।ज्यादा चीनी खाई तो निचले रास्ते से निकल - निकल बाहर आई।वही तो आज डायबिटीज कहलाई। इसलिए इस सफेद जहर से बचना सभी बहन - भाई।गुड़ -चोर आज देश - चोर,चरित्र -चोर और गुप्त -चोर हो गए हैं। 'गुप्त -चोर' अर्थात जिनको सब समझते शाह, ईमानदार और ज्ञानदार। वही निकलते हैं चोरों के सरदार।क्यों ? क्योंकि वे होते ही हैं इतने असरदार! कि कोई समझ ही नहीं पाता कि यहाँ भी हो सकती है कोई दरार।वही तो गाते हैं इमली के पत्ते पर मल्हार ! छोड़ते हुए अपने भाषणों की फुहार।देश में ऐसे ही जनगण की है यत्र - तत्र - सर्वत्र बहार। 

               'गुड़-चोरों' और  कृत्य  'गुड़ -चोरी' से यही सीख मिलती है कि प्रायः आदमी की अपनी नजर में परिश्रम का कोई मूल्य नहीं है। एक गधा ; गधा नहीं सम्पूर्ण 'गधा - वर्ग' ही  अपने  दैनिक  जीवन में   आजीवन कितनी मेहनत करता है ,किन्तु शाम को उसके मालिक द्वारा सिवाय चार डंडों के और क्या ' पारिश्रमिक' मिलता है? और उधर एक नेताजी या कहें अधिकांश नेता-वर्ग बिना पसीना बहाएं क्या- कुछ नहीं पाता ? इसलिए आज का आदमी दूसरों की कमाई पर ऐश करना चाहता है।आज बस वही ईमानदार और सत्यवादी है -जिसे गुड़ -चोरी का 'सुअवसर ' सुलभ नहीं हुआ। सरकारी नौकरी की चाहत का कारण भी यही है कि वहाँ पर 'काम -चोरी 'के अनेक 'सुअवसर' भी हैं।आज तो 'जो रहे लुल्ल, तनख्वाह पाए फुल्ल। ' 'करते जो आराम,खाते बैठकर हराम।' 'काम में करते जो टेंशन, बीबी उनकी पाती है पेंशन।' ये सब गुड़ -चोरों के स्मरणीय सूत्र हैं। दूसरों के हाथों के मैल को आनन्दपूर्वक खाना उनका प्रिय शौक है।यही कारण है कि लोग प्राइवेट नौकरी करने से कतराते हैं ,क्योंकि वहाँ तो अच्छे - अच्छों के तेल निकल जाते हैं। वहाँ तो वे तब जाते हैं ,जब नौकरी की तलाश में जूते के तलवे घिस जाते हैं।

 ● शुभमस्तु ! 

 19.10.2023◆12.15प०मा०

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