बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

चुहल चंद्रिका-चाँद की ● [ दोहा ]

 466/2023


[चाँद,चकोर,चंद्रिका,चंद्रमुखी,शरद]

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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            ● सब में एक●

चुहल चंद्रिका चाँद की,हुई रात भर आज।

अलग हुए वे भोर में,दिखलाती वह नाज।।

शरद-पूर्णिमा की निशा,चाँद कहे आ पास।

मेरी प्रेमिल चंद्रिका,मत हो तनिक उदास।।


रहा रात भर देखता,शशि को विहग चकोर।

तृप्त हुआ सुख से भरा,आया सुहृद सु-भोर।।

ज्ञान-याचना शिष्य की,ज्यों शशि चटुल चकोर

भरी निशा में जोहता,गुरु-मुख   साधक घोर।।


चाँद बिना नव चन्द्रिका,आती लेश न पास।

लिपटी रहती अंग से,तथ्य न ये   उपहास।।

शशि पति की अर्धांगिनी,विमल चंद्रिका धौत।

रहती नित निर्द्वन्द्व ही,अशुभ नहीं  है   सौत।।


चंद्रमुखी   तुम   दूर से,लगती  सदा   नवीन।

देखा जब मुख पास से,लगा दीन अति छीन।।

चंद्रमुखी तुम रूप से,उर ज्यों शिला  समान।

उपमा ये   झूठी  लगी,निर्जल स्वर्ण-वितान।।


शरद सुनहरी  शान से,सरसाई  चहुँ ओर।

सुखद  चाँदनी रात है,मनभाया  शुभ भोर।।

किसे शरद भाए नहीं,नर, नारी,  खग,ढोर।

लतिकाएँ हैं झूमतीं, मीन  भरें   हिलकोर।।


          ● एक में सब ●

शरद- चाँद नव चंद्रिका,चंद्रमुखी अनुहारि।

खग चकोर मुख जोहता,मानो दिया उबारि।।


●शुभमस्तु !


25.10.2023◆8.45आ०मा०

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