446/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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खेत खा रही बाड़,देश की वही कहानी।
तिनका जिनकी दाढ़,चोर की बात पुरानी।।
लूटपाट है नित्य,जिसे जब अवसर मिलता,
बात आज ये सत्य,चोर ही बनते दानी।
देशभक्त का वेश, बनाकर घूमें नेता,
प्रेम नहीं लवलेश, झूठ है उनकी बानी।
मरता सदा गरीब,देश का पालक नित ही,
मिलती उसे सलीब,टपकती निशिदिन छानी।
भरे देश का पेट,कृषक की दशा दीन है,
सबका वह आखेट,उसे सरकार बनानी।
आश्वासन से भूख, नहीं जाती है तन की,
दुर्बल सभी रसूख,प्यास में मिले न पानी।
जन-जन है बेहाल,'शुभम्' ने जाना सारा,
छिना युवा से काम,वृथा ही नष्ट जवानी।
●शुभमस्तु !
09.10.2023◆4.15आ०मा०
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