सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

होता अमृत प्रसवण भीतर ● [ गीतिका ]

 433/2023

   

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●©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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क्या से  क्या होता क्षण भीतर।

छिड़ा  हुआ  है  भी रण भीतर।।


कहाँ  नहीं   है   प्रभु   की सत्ता,

विद्यमान है  कण - कण  भीतर।।


हाथी  ,हय   या    व्हेल  हमारी,

नन्हीं   चींटी   या   तृण  भीतर।।


हार - जीत   का   खेल निरंतर,

चलता  रहता  है  पण  भीतर।।


वैसे  भी क्या  कम  दुख तेरे,

पाल  रहा है क्यों  व्रण भीतर।।


बाहर  क्या चमकाता  मुखड़ा,

झाँक जीव को  दर्पण - भीतर।।


अंतःकरण  'शुभम्' कर पावन,

होता  अमृत -  प्रसवण  भीतर।।


●शुभमस्तु !


02.102023◆4.00आ०मा०

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