बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

पता नहीं ● [ गीतिका ]

 456/2023

          

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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माँ मुझमें  कितनी धर्मी है, पता   नहीं।

तव चरणों  का भी मर्मी है, पता नहीं।।


क्या  माँगूँ  तुझसे  मैं माता बता  मुझे,

क्या-क्या मुझमें शेष कमी है, पता नहीं।


माँ  दुर्गे ! तू  अन्तर्यामिनि सब जाने,

मम  नयनों में शेष नमी है, पता नहीं।


माँ तेरे चरणों का आश्रय मिल जाए,

छाई मन  में यही  गमी  है, पता नहीं।


परिजन  चूसें  रक्त देह का पिस्सू - से,

बात कहाँ तक सही जमी है, पता नहीं।


आया   हूँ   मैं   जीव अकेला जाना भी,

मादा  एक   चुड़ैल  यमी है, पता नहीं।


अपने   जाने   बुरा   नहीं सोचा   मैंने,

दुनिया मुझको लगे तमी है, पता नहीं।


'शुभम्'  शरण  में आया माते माँ   दुर्गे,

नहीं जानता यहीं शमी है, पता   नहीं।


●शुभमस्तु !


18.10.2023◆3.00प०मा०

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