बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

छाया जग में निबिड़ अँधेरा● [ सजल ]

 462/2023

 

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● © शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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● समांत :  एरा ।

●पदांत :    अपदान्त।

●मात्राभार : 16.

●मात्रा पतन : शून्य।

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छाया जग में निबिड़ अँधेरा।

बना युद्ध का   भीषण घेरा।।


इसराइल हमास   को देखो।

लड़ते  कहते    तेरा -  मेरा।।


सबके  अहं  जहाँ  टकराते।

कष्ट   उठाती   है   यह  टेरा।।


कोई नहीं किसी से कम है।

मानव ज्यों  कोल्हू  में पेरा।।


मानवता मर रही रात -दिन।

बना दिया  बस्ती का खेरा।।


गुरुओं की  शिक्षा  में रहता।

करता वही  काम वह चेरा।।


अमरीका इस  ओर खड़ा है।

उधर चीन  या   रूस घनेरा।।


क्योंकर राह दिखे मानव को।

कहीं नहीं    है   शेष  उजेरा।।


'शुभम्'  किसे समझाए कैसे।

आँख  मूँदकर चलता   भेरा।।


*टेरा =पृथ्वी।

*भेरा=भेड़।


●शुभमस्तु !


23.10.2023◆6.00आ०मा०

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