448/2023
[क्वार,निशांत,विजन,हीरक,शरद ]
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक●
पावस बीती क्वार का,आया पावन मास।
लगे फूलने मेंड़ पर, हरे लहरते कास।।
वर्जित है आहार में,हरित करेला मीत।
घाघ कहें सुन भड्डरी,समझ क्वार की रीत।।
तारे रहे न चाँदनी,होता 'शुभम्' निशांत।
उषा-रश्मियाँ झाँकतीं,भानु उदय नव कांत।।
संत,मनीषी,कवि बड़े,रहते सदा निशान्त।
समय पड़े तब बोलती,वाणी निर्मल कांत।।
विजन गहे निज हाथ में,झलती माता एक।
लाल न जागे नींद से,भाव हृदय में नेक।।
गहरी आधी रात को,जाना विजन न राह।
अला-बला घूमा करें,देतीं जन को दाह।।
हीरक सुत संतति सदा,शुभकारी परिवार।
घर में तीर्थ प्रयाग है, गंगामय हरिद्वार।।
देखे वैवाहिक शरद,हीरक जिसने मीत।
उज्ज्वल ही भावी रहे,गा प्रसन्नता - गीत।।
शरद सुहानी सौम्य है,सर्द चाँदनी रात।
दे गलबाँही प्रेम से, करते प्रेमी बात।।
माँ दुर्गा की अर्चना,शरद 'शुभम्'आनंद।
अंबर से बहने लगा, मधुर -मधुर मकरंद।।
● एक में सब●
शरद क्वार शुभ मास है,
सरसिज खिले निशांत।
हीरक विजड़ित चंद्रिका,
झलती विजन सुकांत।।
* निशांत= 1.प्रातः 2.शांति युक्त।
* विजन =1.व्यजन 2.जनहीन।
* हीरक =1.हीरा 2.जन्म आदि का 60वां वर्ष।
●शुभमस्तु !
10.10.2023◆11.00प०मा०
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