430/2023
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● शब्दाकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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धी-मन में करती सदा,मातु शारदे वास।
कविता के अंकुर उगा,भरतीं नवल उजास।।
हंसवाहिनी दान कर,वरदा शुभद स्वरूप,
अक्षर-अक्षर शब्द में,छंद रसों का रास।
वीणावादिनि छेड़ दो,ऐसी सुमधुर तान,
मंत्र मुग्ध होकर सुनें,जड़, चेतन,तरु ,घास।
सितवसनी माँ भारती,बढ़ा जगत में पाप,
अघ ओघों से मुक्त कर,बना हमें लें दास।
कृपा लब्ध वरदायिनी,मूक गा रहे गीत,
बधिर श्रवण करने लगें,जाग्रत हो विश्वास।
त्रिगुणा,शुभदा,अंबिका,नीलभुजा माँ आप,
विधुवदनी भामा,शिवा,सदा ज्ञानदा -आस।
'शुभम्'विनत माँ वैष्णवी,गोविंदा माँ सौम्य,
शुभाशीष हो शीर्ष पर वंद्या परा सहास।
●शुभमस्तु !
01.10.2023◆11.00आ.मा.
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