गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

रामत्व तो उत्पन्न कर लो!● [ अतुकान्तिका ]

 468/2023

  

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● © शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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रावणों ने घेरकर

पुतला जलाया

कौन था वह  ?

राम या रामवत

कोई न था!


जिधर देखें

रावणों की भीड़ भारी,

जो चरित से पतित

दुराचारी व्यभिचारी!

अधिकतर वे ही यहाँ सब,

फिर किसे देते जला वे

'मलयुगी' काली कला ये ?


कहते असत पर

जीत सत की,

क्या टटोला

हृदय अपना ?

सत्यवादी बने हो,

हर वर्ष तुम 

पुतले जलाते

ऐंठ में झूठे तने हो!


रामजी ने

मात्र जलाया 

एक बार,

असत्य का रावण,

रावणत्त्व से है भरा

आदमी के देह कण- कण,

औकात क्या उसकी

लकीरें पीट फोड़े 

बम पटाखे।


तीर ताने 

आ खड़े हो,

झाँक लो अपना गरेबाँ,

वक्ष में तेरे छिपे हैं

सैकड़ों रावण भयंकर,

रामत्व तेरा है किधर

हम भी तो जानें!

कलयुगी उस राम को

पहचान कर

सिर तो झुका लें।


श्रेष्ठ हो यदि

त्रेतायुगी दसशीष से तो

बढ़ो आगे

और लगा दो आग

पुतले में अभी तुम!



डिग्रियों, मंत्रित्व से

पद , झूठी प्रतिष्ठा से

पूँजीपतित्व से

नेतात्व से

अभिजात्यता से

तुम कभी सच्चे न होगे,

रावण टटोलो

आत्मा में।


लौट जाओ

घोंसले में

मुँह छिपा बैठो,

तुम्हें अधिकार क्या है!

निज देह मन में

उत्पन्न कर लो रामत्व,

हाँ ,रामत्व थोड़ा।

रावणों की भीड़ 

घेरे खड़ी है

कागज़ी पुतला 

बड़ा -  सा।


●शुभमस्तु !


26.10.2023◆ 7.00प०मा०

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