गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

दीप ● [ सोरठा ]

 457/2023

         

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●© शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अलख जगाएँ मीत,शिक्षा का ले दीप कर।

गा  उन्नति  के  गीत,पीढ़ी नई समृद्ध   हो।।


जलते हैं दिन-रात,पिता दीप माँ    वर्तिका।

उज्ज्वल  बने  प्रभात,तेल नेह का  डालते।।


वन  से   लौटे  राम, रावण का   संहार  कर।

भरता हर्ष ललाम, दीप जले साकेत   में।।


माटी  का  ही  दीप, माटी की ये    देह   है।

'शुभम्'  न तथ्य प्रतीप,माटी माटी  में  मिले।।


जला - जला कर दीप,फैलाए उजियार  जो।

शिक्षक धरा-महीप,उसका मार्ग प्रशस्त हो।।


घर - घर जलते दीप, ज्योति-पर्व दीपावली।

निर्धन या कि महीप,गली - गली बाजार में।।


दीप लुकाये एक,निज आँचल की  ओट में।

उर में भाव अनेक,गजगामिनि बाला  चली।।


सरिता तट नर -नारि,दीप विसर्जित कर रहे।

अद्भुत निशि-अनुहारि,बनते जल प्रतिबिंब बहु


बनती नूतन  पंक्ति,जला दीप से  दीप   को।

झिलमिल में अभिव्यक्ति,लगता बातें कर रहे।


करता जो उजियार,संतति ही कुल दीप है।

भरता है तम भार,परिजीवी बन जी  रहा।।


उचित  नहीं ये बात,दीप-तले अँधियार   हो।

पिता भयानक घात,निज संतति से खा रहे।।


● शुभमस्तु !


18.10.2023◆8.00प०मा०

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