443/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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हुक्का,गुटका,चिलम, तँबाकू।
नर- जीवन के हैं सब डाकू।।
हुक्के में जो धुँआ उड़ाता।
नश्तर तन में स्वयं चुभाता।।
सट-सट धुँआ चिलम से पीता।
कितने दिन पीकर वह जीता।।
अंग भीतरी दूषित होते।
पछताते आँसू भर रोते।।
गुटका खाकर दिन भर थूके।
मैला करता आँचल भू के।।
दाँत मसूड़े सब रँग जाते।
दिखलाने में मुख शरमाते।।
असमय दाँत-दाढ़ गिर जातीं।
नहीं चबा भोजन वे पातीं।।
रोग बहुत दाँतों में लगते।
असमय ही वे नीचे गिरते।।
पीते - खाते लोग तँबाकू।
'शुभम्' लगें वे जैसे चाकू।।
●शुभमस्तु !
07.10.2023◆8.30 प०मा०
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