465/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कदम कदम पर
रावण मिलते
रामचन्द्र मैं एक न पाया।
खँडहर खेतों
में रावण हैं
गली-गली में सड़कें सारी।
चीख रही हैं
'मुझे बचाओ'
अबला ,बहना, माता, नारी।।
कौन बचाए
सीता माँ को
लखन भरत भी है मुरझाया।
त्रेतायुग का
रावण दहने
कलयुग के रावण हैं आए।
मरा आँख का
पानी जिनका
पुतले वही जलाते पाए।।
हया नहीं है
शेष नयन में
लगा मुखौटा आगे धाया।
आतिशबाजी
धूम धड़ाका
को कहते हैं सभी दशहरा।
चढ़ा हुआ है
कालिख का रँग
मानव के मुखड़े पर गहरा।।
घर की सीता
घर में जलती
हाय! हाय!!का नाटक छाया।
गीदड़ ओढ़े
खाल शेर की
कहता है वन का मैं राजा।
टाँगों में निज
पूँछ दबाए
ताल ठोंकता कहता आजा।।
किसका अब हम
करें भरोसा
लगा रहा अपना सुत घाया।
'शुभम्' रावणों
की माया का
जाल बिछा है परित:अपने।
रामचंद्र अब
एक न कोई
जाते हों जो वन में तपने।।
करें विभीषण
ही बरवादी
जला राम की मनहर काया।
● शुभमस्तु !
24.10.2023 ◆1.00प०मा०
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