454/2023
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● © शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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दुर्गा माँ मम द्वार पधारें।
बरसे कृपा भक्त को तारें।।
शारदीय अति पावन वेला।
लगा भक्तगण का जन मेला।
माँ दुर्गा की सिंह सवारी।
सुमनों से खिलती वन क्यारी।
सद सुगंध की ले कर माला।
द्वार खड़ा तव भक्त निराला।।
महिषासुर निशुंभ संहारे।
शुम्भ आदि दानव भी मारे।।
देवलोक को निर्भय करतीं।
दुर्गा माँ किससे कब डरतीं।।
रौद्र रूप तुम दया मूर्ति माँ।
किससे दूँ माँ की मैं उपमा।।
पर्वत पुत्री ब्रह्मचारिणी।
धन की देवी सौख्यकारिणी।।
मातु शारदा ज्ञानदायिनी।
अघ संहारक शम्भु कामिनी।।
कार्तिकेय की प्यारी माता।
शुभम् चरण युग शीश नवाता।।
दुर्गा माँ के शुभ नवराते।
मंगल गान सभी मिल गाते।।
नौ रूपों में आतीं माता।
तव हर रूप भक्त को भाता।।
माता का दरबार सजा है।
कहते बनती नहीं धजा है।।
शतशः 'शुभम्'नमन करता है।
सत पथ को ही आचरता है।।
●शुभमस्तु !
16.10.2023◆ 2.45प०मा०
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