432/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● ©व्यंग्यकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
दिमाग़ तो दिमाग़ है।इसका सबसे अलग ही राग है।जहाँ कोई भी न पहुँचे ;वहाँ यह लगा लेता सुराग है।देखने भर से प्रतीत होता है ,ये समुद्री फेन है ,झाग है।किंतु अपनी जटिलता में यह शीर्ष से कटि पर्यंत प्रत्युत समग्र देह पर्यंत का सूक्ष्म भाग है।इसकी सूक्ष्म व्यापकता मानो परमात्मा का बाग है।
इस दिमाग़ की एक विशेष बात अथवा तथ्य कहिए ;वह है इसकी गन्ध गन्ध घ्राण- शक्ति। इस समय मेरा दिमाग़ इसी दिशा में सक्रिय है। जब मैं अथवा आप कोई फूल ;मान लीजिए गुलाब का फूल सूँघ लेते हैं ,तो उस फूल के हमारे चक्षु पटल के सामने न रहने पर भी उसकी सुंगंध को हम कभी भी भूल नहीं पाते हैं।यद्यपि उस सुगंध का शाब्दिक निरूपण करना हमारी असमर्थता ही होती है, फिर भी उस पुष्प की वह सुगंध उसमें रस -बस जाती है।इसी प्रकार मोगरा , चमेली,रात- रानी,पारिजात ,गेंदा,जाफ़री,हर सिंगार आदि फूलों की सुगंध भी दिमाग़ में घर कर लेती है। यही नहीं जलेबी, पेड़ा,बर्फी, मिल्क केक, रबड़ी ,रस मलाई ,लड्डू,सोन पपड़ी आदि मिष्ठान्न की सुगंध भी जम सी जाती है।यही नहीं लहसुन, प्याज ,मसाले,घी , तेल आदि की सुंगंध किंवा दुर्गंध अपना स्थान बना लेती है।मिट्टी का तेल, पेट्रोल ,डीजल,नेफ्था,कपूर ,पीपरमेंट,धूप ,अगरबत्ती आदि के लिए भी वही बात है। यही नहीं किसी पत्नी या प्रेमिका को अपने पति या प्रेमी की स्वेद -गंध भी उसके स्मरण ज्ञान में फ्रीज़ हो जाती है। वह उसके पहने हुए वस्त्र को सूँघकर ही पता लगा सकती है कि यह उसी की है।यही हाल बहुत कुछ पति और प्रेंमी वर्ग का है कि उन्हें अपनी प्रिया की देहगंध में डूब जाना मानो स्वर्ग का पाना है।
दिमाग़ ,मष्तिष्क ,ब्रेन या किसी भी भाषा में कोई भी नाम दे लीजिए।उसका काम वही है,जो अपने बहुआयामीय रूप में वह करता आ रहा है। जिस घ्राण -शक्ति की चर्चा हम कर रहे हैं,उसे मानवेतर प्राणियों जैसे :गंगा डॉल्फिन (सूँस),अफ्रीकी हाथी,सर्प,बिल्ली,कुत्ता,मौथ, शार्क,कीवी आदि में कई गुणा अधिक पाया जाता है। अफ्रीकी हाथी में 1948 ऑलफेक्ट्री रिसेप्टर्स होते हैं। जब मानव में इनकी संख्या मात्र 396 ही होती है।ये हाथी 12 मील दूर से पानी की गंध सूँघ लेते हैं।इन्हें अपनी पसंद की घास की सुगंध एक मील दूर से ही मिल जाती है।सांप अपनी जीभ से ही सूँघता है ।यह नाक का प्रयोग नहीं करता। बिल्ली में सेंसटिव सैल (ऑल फैक्टरी एपिथिलीयम) मनुष्य की प्रजाति से दो गुणा होता है।इसमें 200 मिलियन सेंसटिव सेल्स होते हैं ,जबकि मनुष्य में केवल 5 मिलियन ही होते हैं।कुत्ते की घ्राण शक्ति मनुष्य से कई गुना तीव्र होती है।इसलिए उसे जासूसी में प्रयोग किया जाता है।सिल्क नर मौथ 6 मील दूर से ही मादा कीट की गंध पाने में सक्षम होता है। व्हाइट शार्क की घ्राण शक्ति सर्वाधिक होती है । यह एक मील दूर से ही रक्त की एक बूँद भी सूँघ सकती है।कीवी पक्षी की नासिका शरीर के बाहर अर्थात चोंच के पास स्थित होती है।इससे यह धरती के भीतर उपस्थित रिक्त पदार्थ भी ढूंढ़ लेती है।गंगा डॉल्फिन (सूँस) की घ्राण शक्ति चमत्कारिक होती है।
ये ऑलफैक्टरी रिसेप्टर्स दिमाग़ का ही संवेदन शील भाग हैं।जिनकी प्रत्येक जंतु में अलग-अलग क्षमता है।सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य ये है कि यह ली गई गंध दिमाग़ में ऐसी सेट हो जाती है कि जाती नहीं।स्थाई ठिकाना ही बना लेती है। जिस जंतु को जितनी शक्ति की आवश्यकता है ,प्रकृति ने उसे उतनी ही प्रदान की है।ज्यादा भी खतरनाक और कम भी खतरे से खाली नहीं।भले ही सुंगन्ध या दुर्गंध को हम वाणी से अभिव्यक्त न कर सकें ,परन्तु वह मरती नहीं ।नष्ट नहीं होती।दिमाग़ की कोई माँग भले ही न हो ,परन्तु वह इतना अधिक देता है कि पूरे देह रूपी देश की सम्पूर्ण विद्युत का पावर हाउस यही है। यहीं है। बंद ब्रह्मरंध्र के सुषुम्ना शिखर से लेकर सुषुम्ना आपुच्छ दिमाग़ का तंत्र ही प्रसरित है।यह सबकी खबर लेता है। सबको खबर देता है। खबरदार जो इससे बेख़बर रहे। करना वही जो इसके भीतर वाला कहे।पहले से ही सूँघ लेना।अन्यथा फिर मत कहना कि चेताया नहीं था!
● शुभमस्तु !
01.10.2023●8.00प०मा०
●●●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें