शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

महिमा ● [ कुंडलिया ]

 451/2023

      

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●  ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                        -1-

मानें   मानव-देह  की, महिमा अमित   अनूप।

मिली  तुम्हें  भूलोक में, बना धरा    का  भूप।।

बना  धरा   का भूप,कर्म मानव   के    करना।

दानवता  को  छोड़ ,  बुरे  कर्मों    से  डरना।।

'शुभम्' सत्य क्या झूठ,यही सब मानव जानें।

महिमा   अपरंपार, देह  मानव    की    मानें।।

        

                        -2-

जानें महिमा  सत्य की,रहें असत   से   दूर।

जो करना कर ले यहीं,तन- मन से भरपूर।।

तन - मन से   भरपूर,सत्य - आधार   बनाएँ। 

सोचें सौ -  सौ बार ,  झूठ से राम    बचाएँ।।

'शुभम्' सत्य ही ईश,जगत में उसको   मानें।

सदा विनत हो शीश,सत्य की महिमा जानें।।


                        -3-

अपने जननी-जनक की, महिमा का गुणगान।

आजीवन   करता   रहे,देकर नित   सम्मान।।

देकर  नित   सम्मान,  पितृमय माता    तेरी।

पिता   देवमय    रूप,  बढ़ाते शान   घनेरी।।

'शुभम्'  न दूजा  और,देख मत झूठे   सपने।

रहना सदा कृतज्ञ,जनक -जननी  ही अपने।।


                        -4-

खाता -पीता अन्न -जल,जिस धरती का नित्य।

महिमा उसकी गान कर,उसका   है औचित्य।।

उसका है औचित्य ,हवा रवि -तेज   दिया है।

अंबर पावक नित्य,उसी ने जीव  किया  है।।

'शुभम्' कर्म का भार,सदा ढो रहे  न   रीता।

पंचतत्त्व का मान,करे नित खाता -  पीता।।


                        -5-

माता धरती पूज्य है,कण -कण  का  है  मान।

महिमा उसकी  जान ले,रहे न बनकर   श्वान।।

रहे न   बनकर  श्वान,  कर्म से जीवन  जीता।

अमर  वही यश काय, प्रेमरस माँ का पीता।।

'शुभम्'एक दिन राख,खाक बन नर मर जाता।

चढ़ा   न   इतनी  नाक,  रुष्ट हो  धरती माता।।


● शुभमस्तु !


13.10.2023◆4.00प०मा० 

              

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