मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

नाच न जाने आँगन टेढ़ा ● [ सजल ]

 469/2023


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● © शब्दकार 

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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● समांत :  अना ।

●पदांत :    अपदान्त।

●मात्राभार : 16.

●मात्रा पतन : शून्य।

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 बंद  आँख से देख न सपना।

पड़ता चक्षु खोलकर तपना।।


जिनके  मन में  आग लगी है।

करते पूरा   सपना   अपना।।


माल  बिना श्रम वे पा  जाएँ।

आता  ऐसी   माला  जपना।।


नाच  न जाने    आँगन   टेढ़ा।

नहीं  चाहता  मानव झुकना।।


चोरी का स्वभाव मत अपना।

पुलिस-दंड  तोड़ेगा  टखना।।


श्रम की रोटी अर्जित करता।

जाने वही स्वाद को चखना।।


'शुभम्' राह टेढ़ी मत चल तू।

लेश न तुझको पड़ना झुकना।।


●शुभमस्तु !


30.10.2023◆6.00आ०मा०

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