गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

अद्भुत साँचा-धारी ● [अतुकान्तिका ]

 438/2023

 

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● © शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अद्भुत है तू

साँचा - धारी

मूर्ति बनाकर

रहा तोड़ता

अपने साँचे

नए बनाता नित्य,

और फिर

पास न रखता।


तू मौलिक,

तेरी हर रचना 

मौलिक,

नहीं एक -सी

 दो प्रतिमाएँ

इस धरती पर

कभी बनाता,

सृष्टि विधाता।


नर -नारी के

कोई चेहरे

नहीं एक सम,

रूप रंग आकार

भिन्न हैं,

 नहीं कभी

दो हाथों की

रेखा भी मिलतीं

धन्य नियंता!


एक राम हैं

एक कृष्ण हैं

बना न दूजा,

महिषासुर 

रावण कंसासुर

सभी एक थे,

कोई प्रत्यावर्तन

स्वीकार न प्रभु को।


मिथ्या है यह

कभी लौटता है

इतिहास दोबारा,

प्रजापिता ने

नया बनाया

पिछला तोड़ा,

पीछे छोड़ा।


'शुभम्' नित्य कर

रचना अपनी

नई नवेली ,

सुघर हवेली,

कर अठखेली

काव्यमृत से,

तू भी उसकी

रचना मौलिक,

मौलिक ही रच,

तप में तच  - तच।


●शुभमस्तु !


05.10.2023◆6.30आ०मा०

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