बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

कर्मों से पहचान है ● [ दोहा ]

 434/2023


[उद्योग,पहचान,अथाह,हेलमेल,उजियार]

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● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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        ●  सब में एक ●

नर-नारी उद्योग  जो,करते नित   सुविचार।

लक्ष्य-सिद्धि मिलती उन्हें,होता निज उद्धार।।

बिना किए उद्योग के,मुख में चले न ग्रास।

गंध स्वेद की व्यक्ति को,देती नित उल्लास।।


कर्मों    से पहचान  का,है सीधा   सम्बन्ध।

श्रेष्ठ   कर्म  की विश्व में,उड़ती ऊर्मि -सुगंध।।

पहले ही पहचान लें,मनुज-मनुज की रीति।

कपटी  से  दूरी  रखें,जहाँ न सच्ची   प्रीति।।


नहीं  ज्ञान  की  माप है,जितना   पाएँ   न्यून।

सागर अतल अथाह ज्यों,बिना अहं के दून।। 

मानव-चरित अथाह है,लिखे काव्य बहु ग्रंथ।

धर्मों  के  वन  में  उगे, अखिल हजारों पंथ।।


वसुधा ही परिवार है, हेलमेल  का   खेल।

मानव सब मिलजुल रहें,रुके न  उन्नति-रेल।।

हेलमेल घर में  नहीं  ,  बिखरा हो  परिवार।

सदा खुले उसके लिए,विपदा के बहु  द्वार।।


कर्मों के उजियार की,खिले चाँदनी नित्य।

नभ - मंडल में जा चढ़े,लक्ष्यों का आदित्य।।

'शुभम्' जगत में कर्म का,फैलाएँ उजियार।

मिटे सर्व अघ-ओघ का,जन का निम्न विचार।


      ● एक में सब ●

कर्म   करें उद्योग से,

                        कर पथ की पहचान।

हो अथाह उजियार भी,

                          हेलमेल सह मान।।

●शुभमस्तु !


04.10.2023◆12.45आ०मा०

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