434/2023
[उद्योग,पहचान,अथाह,हेलमेल,उजियार]
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
नर-नारी उद्योग जो,करते नित सुविचार।
लक्ष्य-सिद्धि मिलती उन्हें,होता निज उद्धार।।
बिना किए उद्योग के,मुख में चले न ग्रास।
गंध स्वेद की व्यक्ति को,देती नित उल्लास।।
कर्मों से पहचान का,है सीधा सम्बन्ध।
श्रेष्ठ कर्म की विश्व में,उड़ती ऊर्मि -सुगंध।।
पहले ही पहचान लें,मनुज-मनुज की रीति।
कपटी से दूरी रखें,जहाँ न सच्ची प्रीति।।
नहीं ज्ञान की माप है,जितना पाएँ न्यून।
सागर अतल अथाह ज्यों,बिना अहं के दून।।
मानव-चरित अथाह है,लिखे काव्य बहु ग्रंथ।
धर्मों के वन में उगे, अखिल हजारों पंथ।।
वसुधा ही परिवार है, हेलमेल का खेल।
मानव सब मिलजुल रहें,रुके न उन्नति-रेल।।
हेलमेल घर में नहीं , बिखरा हो परिवार।
सदा खुले उसके लिए,विपदा के बहु द्वार।।
कर्मों के उजियार की,खिले चाँदनी नित्य।
नभ - मंडल में जा चढ़े,लक्ष्यों का आदित्य।।
'शुभम्' जगत में कर्म का,फैलाएँ उजियार।
मिटे सर्व अघ-ओघ का,जन का निम्न विचार।
● एक में सब ●
कर्म करें उद्योग से,
कर पथ की पहचान।
हो अथाह उजियार भी,
हेलमेल सह मान।।
●शुभमस्तु !
04.10.2023◆12.45आ०मा०
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