290/2024
[अनमन,अमराई,अकथ,आचरण,अनुपात]
सब में एक
उचित नहीं अनमन कभी,सुहृद दंपती बीच।
बढ़ती नित्य खटास ही,रसना उगले कीच।।
अनमन भारत पाक की,नित्य बढ़ाए रार।
क्यों मजहब के नाम पर,बहे रक्त की धार।।
अमराई में चू रहे, पीले टपका आम।
शुभ अषाढ़ का मास ये,उमड़ रहे घन श्याम।।
पहला - पहला दोंगरा,अमराई के बीच।
तन-मन को पुलकित करे,बहे स्वेद की कीच।।
अकथ कहानी नेह की,कही न जाए मीत।
जो आपा अपना तजे, सदा उसी की जीत।।
ताप बढ़ा अति भानु का, शब्दातीत अपार।
अकथ उसे दुनिया कहे, भयाक्रांत संसार।।
जैसा जिसका आचरण,वैसा उसका नाम।
जग में यही प्रसिद्ध है,क्या रावण क्या राम।।
मूषक शेर बिलाव का,अपना अलग स्वभाव।
अलग आचरण से करें,पार जगत की नाव।।
गुण - दोषों का अलग ही,सब में है अनुपात।
भाषा बने चरित्र की, मानव या जलजात।।
हिंसा करुणा प्रेम का, सिंहों में अनुपात।
सौ में सौ हिंसा प्रबल, ये वन्यों की जात।।
एक में सब
अकथ आचरण जीव का,सुगुण दोष अनुपात।
अमराई में रूठकर, अनमन बैठी रात।।
शुभमस्तु !
26.06.2024●5.15आ०मा०
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