291/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्
नहीं होते
सभी सिद्धांतप्रिय,
जीते हैं
जिस किसी भी तरह
ज्यों गली का कोई श्वान।
जहाँ जो मिला
जैसा मिला
खा लिया,
द्वार -द्वार भटका
कुछ पा लिया,
यही ही उनका जीना।
मानव रहे
मानव की तरह,
जिए मानव की तरह,
कुछ सिद्धांत भी हों
जीवन जीने के लिए।
संघर्ष तो
करना ही है,
इसके बिना
जीवन नहीं है,
बस यही तो सही है।
अपनी राह
स्वयं ही बनानी है,
यही तो 'शुभम्'
इस जीवन की
कहानी है,
रुकना नहीं
झुकना नहीं,
चरैवेति- चरैवेति।
28.06.2024●6.15आ०मा०
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