289/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
खेती का सिरमौर है, हलधर वीर किसान।
उपजाता है अन्न फल, हरे शाक पय धान।।
हरे शाक पय धान, देश का पोषण करता।
सूती वस्त्र कपास, वेदना तन की हरता।।
रहना 'शुभम्' कृतज्ञ, कृषक नर-नारी जेती।
भू माँ के हैं विज्ञ,करें फसलों की खेती।।
-2-
जानें क्या वे खेत को,तपसी कृषक महान।
खेती से वे शून्य हैं, परिचित पेड़ न धान।।
परिचित पेड़ न धान,उच्च भवनों में रहते।
आलू भू के गर्भ, मटर डाली पर उगते।।
'शुभम्' न देखी बाल, अन्न गोधूम न मानें।
उच्च वर्ग का हाल, नहीं खेती को जानें।।
-3-
नेताजी खेती करें, समझ देश को खेत।
फसल उगाते स्वर्ण की, जनता सारी रेत।।
जनता सारी रेत, वही फिर सोना उगले।
महलों में शुभ वास, महकते मोहक गमले।।
'शुभम्' हाल विद्रूप, न खाते रोटी भाजी।
काजू कतली सूप, शुष्क मेवे नेताजी।।
-4-
खेती पालक देश की, नहीं जानते मर्म।
नेता भारत देश के, शेष न किंचित शर्म।।
शेष न किंचित शर्म, कृषक का शोषण होता।
चिथड़े पहनें नारि, कृषक भर आँसू रोता।।
'शुभम्' नहीं अनुदान,शुष्क ज्यों सरि की रेती।
कैसे कहें महान, उपेक्षित सूखी खेती।।
-5-
जैसे वीर जवान पर, देश त्राण का भार।
वैसे धीर किसान दे, अन्नदान उपहार।।
अन्नदान उपहार, त्राण करती है खेती।
सहती कठिन प्रहार, सभी जीवन धन देती।।
'शुभम्' बनाए शान, जी रहा जैसे - तैसे।
स्वेद कृषक का मान, जान का त्राता -जैसे।।
शुभमस्तु !
25.06.2024●8.30आ०मा०
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