261/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अनिश्चय के
झुरमुट में
फंसा लोकतंत्र
चिल्ल्ला रहा
बार -बार
त्राहि माम ! त्राहि माम!!
भेड़ियों की
झपट ने
लहूलुहान कर दिया
अपना लोकतंत्र,
बड़ा ही असमंजस
बँटने लगी है
जूतों में दाल!
अति बुरा हाल!
अपने -अपने
उल्लुओं को
सीधा जो करना है,
बेपेंदी के लोटों को
यों ही तो
लुढ़कना है।
बड़ा ही अफ़सोस!
किस मोड़ पर
लाकर कर दिया
खड़ा ये देश,
बदल - बदल वेश,
आ गए महत्वाकांक्षी
जिनका नहीं कोई
चरित्र ,
न बची नैतिकता,
भुगते अब देश,
बढ़ता हुआ
निरन्तर क्लेश।
ठगे गए हम
ठगा गया
जनता जनार्दन
उसके ही स्वार्थ ने,
'शुभम्' किसे दें दोष,
खो दिए होश
बढ़ा अति रोष!
आक्रोश ही आक्रोश।
शुभमस्तु !
07.06.2024●1.30आ०मा०
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