266/2024
[सिकंदर,मतलबी,किल्लत,सद्ग्रंथ,राजनीति]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
समय सिकंदर से सभी,सधते हैं शुभ साज।
समय सबल संबल सदा,बिना किसी आवाज।।
हाड़ - माँस का आदमी, भरता कोरा दंभ।
समय सिकन्दर ही सदा,है सशक्त शुभ खम्भ।।
परहित तो आता नहीं,यहाँ मतलबी लोग।
छपते हैं अखबार में, जनसेवी का रोग।।
हाँडी मतलब की सदा, चढ़े एक ही बार।
बढ़े मतलबी लोग ही,मतलब का संसार।।
जिल्लत की किल्लत बड़ी,इल्लत बड़ी असाध्य।
मिन्नत में पटु लोग जो, कुछ भी नहीं अबाध्य।।
अच्छे - अच्छे लोग भी, हो जाते बेहोश।
किल्लत आती भाग्य में, जिल्लत का आगोश।।
अनुभव के सद्ग्रंथ को, पढ़ना देकर ध्यान।
कदम - कदम पर हैं खड़े,दुश्मन खोले म्यान।।
सीख अगर शुभ चाहिए, जीवन है सद्ग्रंथ।
लीक नहीं सीधी कभी, चलना है जिस पंथ।।
राजनीति में मित्र का,करना मत विश्वास।
उचित यही जा खेत में, चर लेना तुम घास।।
राजनीति से प्यार है, फिर भी घृणा अपार।
घुसना ही सब चाहते, बना उसे सब यार।।
एक में सब
राजनीति किल्लत बड़ी,नहीं एक सद्ग्रंथ।
सभी सिकंदर मतलबी,खोज रहे शुभ पंथ।।
शुभमस्तु!
12.06.2024●3.15आ०मा०
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